देश - दर्शन | Desh-darshan

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Desh-darshan by ठाकुर शिवनन्दन सिंह - Thakur Shivanandan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । किरी समाज या मनुष्यमात्रकी उन्नतिका विचार उपस्थित होने पर ये दो प्रश्न आपसे आप मनमें उठते दें:- (१) वे कौन कौनसे कारण हैं जो अबतक मनुष्यजातिकी उन्नति और सुखसस्द्धिको रोकते रहे ? और (२) क्या मविष्यम उन सब कारणों, या सब न सही तो उनमेंसे कुछ कारणोंकि दूर होनेकी आशा हैं ? इन प्रश्नोको पूरी तरह दर करना ओर मनुष्यकी उन्नतिके बाधक कारणों पर पूरी तरह विचार करना किसी एक मनुष्यकी शाक्तिसे बाहर हैं । इस लिए भिन भिन्न देशों तथा भिन्न भिन्न समयोंके विद्वानों, तत्त्ववे- त्ताओं और लोकहितेषी मनुष्योंने इन प्रश्नोको अपने अपने ढंग पर अलग अलग हल करनेका प्रयत्न किय। दे और उन्नतिके बाधक कारणोंमेंसे किसी एक कारण पर अपने अपने विचार प्रगट किये हें । संसारमें जितने शात्र हैं, सबकी रचना धीरे धीरे हुई रै । कोई शास्र एकदम ही नहीं बना । जगतमें अनेक प्रकारके व्यवहार होते दें । जिसे जो व्यवहार भच्छा लगता है वद्द उसे ही करता है । प्रत्येक व्यव- हारका जैसा भला या बुरा परिणाम होता है, बेसा ही लोग उसका भनु- गमन या त्याग करते हें । लाभदायक व्यवहारोंको छोग स्वीकार कर ढेते हैं भार हानिकारक व्यवहारोंको छोड़ देते हैं । मनुष्य अपने तथा अपने पूर्वजोंके अनुभवोंसे लाभ उठाता है । पहले उनके अनुभवके अनु- $




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