नयी तालीम | Nai Talim

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Nai Talim by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

Add Infomation AboutDheerendra Majoomdar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
बाई हुआ है बं भी तनाव, स्वार्थ और लोभ घटा नहीं है, प्रवट होने के स्वरुप में कुछ परिवान मत्ते हो हुआ हौ, सेनि गौव की एवत को तोडने मे उनद्ा स्यान क्म नहीं रहा है । अभिनव ग्रामदाव की भूमिका में अब हमें एक्या के प्रश्न के सभी पहलुओं पी गटराई से छानदोन करनी चाहिए, क्योंकि ग्रामदानों गाँवा का अस्तित्व इसी बात पर निर्भर है कि कहाँ तक हम उन्हें विरोधो थे शापूर्ण आपर्स निसइरण, सामूहिक निर्पय वी प्रश्षियां तथाः सामाजिक न्याय के सृल्यो में दीक्षित कर पते हैं। अगर हम यह न वर सके तो आधिक विवास वे” कार्यक्रम नहीं टिक पायगे, और अगर टिकेंग भी तो दुछ परिवारों कैः स्नर पर, पुरे गाँव के स्तर पर नहीं । एवता के विवास मे बार्यकर्ता के ध्यपिनत्व का बहुत अधिक महत्व है। वह स्वप हर प्रकार के भेदभाव से अलग हो, रोवा के कारण उसे सका विश्वाप्त प्राप्त हो और उसे ग्रामीग मनोजिज्ञान वा अच्या अम्यास हो, तर्भ' वह गाँव को सही रास्ते पर में जा सकेगा, सेवन उसका स्थान हमेसा सलाहवार का हो रहेगा, पच वा नहीं । एवता के विवास में पुलिस ओर अदालत से मुक्ति फी चैष्टा वे अलावा तीन चीज विशेष रूप से सहायक होती ह एक, सत्सग और सत्साहित्य आदि वे द्वारा चित्त वी घृत्तियों का उ्ध्वीक रण, दो, ऐसी; प्रवृत्तिपाँ, जिनके द्वारा परस्पर सम्पर्क और सटषार वदता रहै, तीन, स्वस्य सामूहिक मनोरजन ॥ ग्रामगभा की सेवक समिि' वो चाहिए कि गाँव के प्रशनो को सेवर बरायर बेठे ताकि, लोगो को एक दूसरे वो. समसते, अप स्वार्थ को सामूद्धिड रपाथ से जोन और सदी सम्मति से सही काम करने वा अम्याम हो 1 एकता से मुक्ति बी ओर अगर एकता सप जाय तो मुक्ति दा संघ आसान हो जावगा 1 एकता मुख्यत दो दिशाओ में परिसक्षित होनी चादिए-पूलिस और अदालत से मुक्ति तथा सायू टिक निय + इगि ग्रामदान हो जान के बाद सबसे अधिक ध्यान छुरत पुलिप्त और अदालत से युक्ति कीं ओर जाना लगस्व, 'इ५ ] चाहिए। इन दो रे मुक्ठ होने वो चेष्टा में गाँय की सदुभावना संगठित हो जाती है, और गाव मटनूत क्ले लगता है दि वह एक इकाई है, जिसदा हित नापसमे जुड़ा हुआ है; और जज गो दिमाग गाँव को नड़ाने में सगा हुमा है वह दूसरी दिशा मे मुने लगता है ! व्यसन मुक्ति का प्रश्न अत्यन्त मह्य वा है, सौर अव्यन्त कठिन भी है। दुय समुदा्ो मे, पष आदि वासिपो गौर हर्जिनो मे, नशी चीजो के इस्नेमान स्वभाव और स्वयर्म का अग बने गया है, ऐसे लोगों बा बहुत सहानुभूति वे” साथ हो हृदय परिवर्तन श्रिया जाना चाहिए । जरा तक व्यमर्नो का सम्बन्ध सर्र वो नीति से है, ग्रामसभाभो षौ अपनो आपाय बुन्द करते के लिए प्रेरित करना चाहिए । सामूहिक निणंय सामूहिक निगय एकता का सदसे ठोम और प्रत्यश ( पाजिटिव ) स्वरूप है, लेशिन कठिन है। हमारा पूरा चरित्र आदेश का पलन करो और दूसरों से आदेश पालन कराते का बना हुआ है। ईर्प्या, देय, मद और मत्सर से हमारा दिमाग भरा रहता है। लैकित हम जानते हैं कि प्रामदान का लोवतव्र सर्वानुमनि पर ही चल सकता है, बहमन देः आयार परर महौ ।* इसका यह्‌ यरं है कि हमे दूसरे वे' दृष्टिकोण को समझकर उसमें सच्चाई का अश ढ़ ढ़ने और उसमें सहमत होने की तीव्रता महसूस करने की आदत डालनी चाहिए ! यह्‌ कामं आसान नही है, लेकिन इसे द्विना ग्रामसभा टिक भी नहीं सकदी । ज्यॉही . ग्रामसभा में. बहुमत-अल्पमत ( मेजारिटी माइनारिटी ) का प्रश्न घुसा कि ग्राममभा गयी । इसलिए सेवरनसमिति' के सदस्यों का रावसम्मति और सवनुमति की बला तथा सभा करो को प्रक्रिपा से अम्यास होना चाहिए कायर ग्राममभा वै सामन उन पलु को रखता रहे जिनके आधार पर निष्पक्ष और सी निवि हो सके वह्‌ कभी प्रामसप्रके गायं निय को समद्‌ अपना व्ही निप लादने की कोशिदानकरेद ग्रामसभा के सुर्ड और सक्षम विकास पर ग्रामदान का भविष्य दिमेर है, प्रापदान का ही री गाँवा वे हमारे देश मे स्वय लोकतत्र का। विभिन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now