स्त्री - समाज | Stri-samaj

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Stri-samaj by श्रीमती ज्योतिर्मयी ठाकुर - Shrimati Jyotirmayi Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्री-समाज श वि कि वत्त मान काल की उन्नति इस परिवत्तन के साथ-साथ घल रही दे। जद्दां परिवत्तन नहीं है चद्दों उन्नति नहीं है । जीवन का प्रकाश भी वद्दों पर नद्दीं पाया जाता। परिवत्तेन के विरोधियों में अंचकार है अविश्वास दे शरीर जीवन का असंतोप है। ग्रद्द सब ंघकार के कारण है। परिवत्तन के प्रकाश मे छाशा शोर संतोष की वृद्धि हुई दे । मेरा श्रभिप्राय केवल स्त्री-समाज श्र उसके परिवत्तन से है। मेंने सदा परिवत्तेन को दी जीवन समा दै शरीर उसी पर विश्वास किया है। यद्दी कारण है. कि स्त्रियों के बदलते हुए जीवन को मैंने श्ञादर के साथ देखा है.। मैंने सदा विश्वास किया है कि यद्द परिवत्तेन मनुप्य-जीवन को सत्य की ोर ले जा रददा है। फिर वे चाहे स्त्रियों हों पुरुष 1 प्रकृति की इच्छा के बिना कोई भी परिवत्तन नद्दीं दो सकता । प्रकृति स्वयम हमारी भूलों का संशोधन करती है। यदि दम उसके परिवत्तन को स्वीकार न करे तो श्वमेक प्रकार के घिरोधी वातावरण का इमें सामना करना पढ़ता हैं । प्रत्येक में परिवत्तेन निश्चिन्‌ है इसीलिये मेने सदा उसको आदर से देखा दै। स्त्रियों का यह परिवत्तेन स्वभाविक है। उनका पुराना जीवन सभी प्रकार योग्य साबित हुआ है. । जो लोग पुरानी शिक्षा ौर सभ्यत्‌। के पक्षपाती दैं वे इन चातों को कभी स्वीकार न करे गे। उनके न स्वीकार करने से क्या दोता है। घिना घावश्यकता के कोई परिवत्तन नह्दीं हुमा करता । स्त्रियॉमें भी बद्द परिवत्तन के कारन छी है। पुराने झादर्शो ने उनकें मार्गो में दंगा डालने का काम फिया है। जीचन की नेक ्ावश्यक चाते उनसे अलग




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