स्त्री मुक्ति | Stree Mukti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्रोमुक्ति॥ श्र दे उपपहबलभरथश बाज 1 मेष. ह/६ कि ही में हुआ, एक में नहीं । इस सम्बन्ध में यह भी बिचारणीय है कि सहननों के लिये तो पुद्दले बर्गणाओं में इंतना परिवत्त न होजाय कि युगपत तीन का छोप, परन्तु आयु काय के परिमाण में उस परिवत्त न से कुछ सो न्यूनता न भावे, यह बात साधारण बुद्धि में भी खटके बिना रह नहीं सकती,। सैकड़ों खियां पुरुषों के समान उत्छप्र थायु और काय परिमाण भाप्त करती हैं, संदननों के अभाव को तरह इन में भी हानि होनी चाहिये थी और शाख्ों में इस का उल्‍्छेख दोनां चाहिये था कि कम्में -भूमि की- खियां पुरुषों के बराधर -भायु--काय भी नहीं प्राप्तकरेंगीं । शाखों में न कहीं इसका ज़िश् है, भर न देदधारियों में.इसका नियमरूप अस्तित्व । अतः परमाए घाद इस उत्तम संदननाभाव कें हेतु का कुछ भी मरडन नहीं कर सकता | दे शोग--भूमि में खियाँ पुरुषों के समान क्यों हुई' उस समय भी झेद होना चाहिये था, यदि इस खयाल, को थोड़ी देर के लिये छोड़कर यदद मान भी लें कि. कर्म्म-भूमि में ख़ियों का संदनन पुरुषों से.द्दीन ही होता है तो भी तीन सैंहनन का अभाव यन नहीं सकता + चज्गनाराच और नाराच दोनों होते हुए भी वज्जष भनाराय 'बाले पुरुषों से खियां बछ में हीन ही रहेंगी । इस की कौनसी वजह है कि इन दो का भी चिच्छेदे दोजाय । तदुपरान्त जिनके मत में यह जंची हुई है कि खियां तो पुरुषों के वरावर संदननशक्तिः की शारका हो ही नहीं सकती, वे खियों के केवठ तीन संहनन सान- कर भी अपने मतको सिद्ध नहीं कर सकते । व्यक्ति-गंत बिचारगे शो हज़ारों पुरुष छठे संदनन के होंगे, वीसियों चौथे के दोंगे, यहां सक कि प्रथम प्रशस्त संदनन वाले तो इनेगिने ही होंगे, कारण कि महान पुरयवानों ही के उस का उदय था । जन साधारण तो उतनें पुर्याधिकारी हो ही नहीँ सकते । इसी प्रकार खियों में थी अभि-. मत अद्धनाराच, कीलक भौर म्टपारिक तीनों में अल्प बहुत्व मान- दे




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