कर्म ग्रन्थ | Karm Granth

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Karm Granth  by पं. कैलाशचंद्र शास्त्री - Pt. Kailashchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्वकथन १५ जहाँ कहीं प्रवर्तक्थमका उल्लेख आता है, वह सब इसी प्रिपुस्पार्थवादी दछके मन्तव्यका सूचक दै । इसका मस्तव्य सक्षेपमें यदद दे कि धम- इुमकमका पउ स्वग और अधम अशुमरुमका फल नरक आदि दै 1 धर्मा- चर्म द। पुण्य-पाप तथा अदप्ट कदटाते हैं और उ दकफि द्वारा जम ज मान्तरकी चमप्रहृचि चखा करती ई, जिसवा उच्छेद शक्‍्य नददीं है । झक्य इतना ही दे कि अजगर अच्छा लोक और अधिक सुख पाना हो तो धर्म दी कतेंब्य द । | इस मतके अनुसार जपर्म यां पाप तो देय हैं; पर धम या पुण्य देय नहा । यद्द दछ सामाजिक व्यवस्थाका समयऊ था, अतपव वह समाजमान्य दिष्ट एव विहित आाचरणेंति धर्मकी उसति घतलाकर तथा निन्य आचरर्णो से अधमङी उसि बतटाफ़र सब तरषवी सामाजिक सुव्यवस्थाका ही खकैत करता था 1 बही दल ब्राझषणमार्ग, मीमासक और कर्म काण्डी नामते प्रसिद्ध हुआ 1 ~ कमवादिर्भोका दूरा दल उपयुक्तं दले प्रि वियद्ध दृष्टि रखनेयाला था । यहं मानता था कि पुनर्मा फारण कम अवश्य है । शिष्टसम्मतं एय विदित कर्मके थाचरणके घम उदन होकर स्वगं भी देता दै । पर वदे घर्म भी अधर्मकी तरदद दी सर्वथा देय दे । इसके मतानुसार एक चौथा स्वतन्त्र ुष्ार्थ भी ६ जो माक्ठ कदटाता ३ 1 इखका कथन है कि एकमान मोश्च दा जीवनका ल्ध्य दै ओर मोक्षके वासते फममान) ष्वद वह्‌ पुण्यस्प हो या पादस्य, देय दै 1 यद नदीं कि कर्मका उच्छेद शक्य न कषे । प्रयत्नसे वद मी शक्य ई । जद कीं निवर्तक धर्मक उस्टेख आता द व्यँ खरे टी मता युतक द । इसे मतानुखार जय आर्य त्विक्‌ कमनिद शाक्य आर्‌ इष्ट है तव दमे प्रथम दलकी षके विषदी कमफी उसचिका असली कारण चतलाना पड़ा । इसने कहा कि धर्म और मघमत्रा मूठ कारण प्रचल्ति सामाजिक विधि-निपेष नहीं, किम्तु अडान और राग द्वेप दे । कैसा दी शिप्टसम्मत शौर विदित सामाजिक आचरण




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