सूर - पंचरत्न | Sur - Pancharatn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीकृष्णाय नम!
शै
संसार जटिल समस्याश्रौ का अगार हे, दुःखसमय कारागार है। इस जड़े
शत् मे सुख का नाम नदीं | षन; जन्, साहाय्य, संपत्ति, पदमयादा, विद्या;
यश, सव भटे ! इस संसार-मरुस्थलं मं समस्त प्राणी एुखप्राम्तिरूपी मृगतृष्णा
की खोज में मटकते फिरते हैं । सभी यथासाध्य सुखोपाजन के प्रयास में लगे
रहते रै, लेकिन सब प्रयत्नो का, सब साधनाश्रो का पर्णिम होता क्या है,
केवल हाहाकार ! विधाता की सृष्टि दन्द्रमय है । एक शरोर सुख हें तो दूसरी
ओर दुःख, एक शोर पुण्य है तो दूसरी श्रोर पाप, एक श्रौर स्वयं है तो दूसरी
ओर नरक । इसी प्रकार श्रादि-प्नन्त) निन्द्ा-स्वुति, संप्ति-विपत्ति; उन्नति-श्रव-
नति, सत्य-ग्रसत्य, धर्म-ग्रधम आदि विरोधी भावों में ही इस संसार को स्थिति
है अथवा यों कहिये कि संसार इन दो विरोधी भावों की समष्टि हैं ! दिन
और रात की तरह पर्याय से इनका यातायात लगा ही रहता है । इनमें से
एक साव सानव-हृदय को प्रिय होता है तो दूसरा ग्रप्रिय परमात्मा ने यदि
सब शुभ ही शुभ बनाया होता तो अशुभ का श्रस्तित्व कहाँ । बिना सुख का
अनुभव किये दुःख, अथवा दुःख का अनुभव किये बिना सुख कैसा ! ईख का
रस कितना मीठा होता है, इस बात का ज्ञान शिवा श्मनुभव किसी व्यक्ति को
तब तक श्रच्छी तरह नहीं हो सकता जब तक उसने नीम कौ कटुता का अनु-
अब न {न म ? दथः ससार-साः प्र 5 रो न 7 थ क
भव न किया हो । इस अपार संसार-सागर में गोता लगाने से सुख-दुम्ख का
अनुभव प्रत्येक प्रणी को हता है । अरब प्रश्न यह उठता है कि सुख श्रीर्
User Reviews
No Reviews | Add Yours...