सञ्चारिणी | Sancharini

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sancharini by शांतिप्रिय द्विवेदी - Shantipriy Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शांतिप्रिय द्विवेदी - Shantipriy Dwivedi

Add Infomation AboutShantipriy Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सश्वारिणी ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास,-इन चार आश्रमों की योजना ही हमारे जीवन की अन्तिम भक्राँकी के परम शान्ति में दिखलाती है । प्रथम आश्रम त्रह्मचय्य में संयम की कठोरत। से हमारे जीवन का प्रारम्भ होता है, और अन्तिम आश्रम संन्यास की केमलता में उसका अन्त होता है । ब्रह्मचय्य की प्राभातिक उज्ज्जलता संन्यास, कं सान्ध्यकापाय में गोघूलि का शअथ्वल हो जाती है, मानो हम अपने जीवन की चित्रकला ( कविता ) के एक सादौीकलासे प्रारम्भ करत दहै, बीच में वासन्ती आर इन्द्रधनुपी छटा उठाकर, रन्त मे एक गम्भीर शान्त वणं ( गोधूलि ) में समाप्त कर देते हैं । त्रह्मचय से संन्यास तक के मध्य मं रोमान्स और ट्रेजडी है, किन्तु ये हमारे जीवन-काव्य कं गोण परिच्छद्‌ हैं; आदि (ब्रह्मचय्य संयम ) और अन्त ( संन्यास-शान्ति ) ही प्रधान हैं । कारण, हमारी संस्कृति ने सम्पूर्ण श्नुरागों (मनोरागों) के ऊपर विराग के ही प्रधानता दी है। जौ हमारा गौण है, वह दृसरे साहित्यों का प्रधान है, इसी लिए आधुनिक साहित्य में हम रोमान्स और ट्रेजनडी अथवा सुखान्त आर दःखान्त कीश्रोरदही मुकाव पाते हैं। सुखान्त या दुःखान्त, जहाँ का साहित्यिक दृष्टि- कोण है वहाँ की संस्क्ति ऐहिक है । हमारी संस्कृति अतीन्द्रिय है । हमारा देश इन दिनों ऐहिक संस्कृति के सम्पक में भी है, अतएव, हमारे श्राघुनिक साहित्य की सष्टि में वह दृष्टि भी अगोचर नहीं । ॐ # १




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now