सेगांव का संत | Segavan Ka Sant

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Segavan Ka Sant by श्रीमन्नारायण अग्रवाल - Srimannarayan Agrwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेगाँव का संत १५ है? में तो यहाँ का सबसे बड़ा दरिजन ह रौर मेरा कुटु'ब भी है।” काशी पटेल मुस्किरा दिया । लेकिन महात्माजी उसे छोड़नेवाले थोड़ ही थे । “काशी पटेल, तुम्दीं बतलाओ । अगर तुम्हें एक एसी जगह बुलाया जाय, जहाँ तुम्हारे लड़के को जाने की मनादी हो, तो तुम क्या करोगे ?”' ““महात्माजी, श्राप बेचारे परेल को फंदे में डालते हैं ।” जमनालालजी ने मुस्किराकर कहा । “तो जब तक वह नाई मेरे हरिजन कुटु'ब की हजामत बनने को तैयार न होगा, मै उसकी सेवा कैसे स्वीकार कर सकता हूँ ?”” काशी पटेल फिर मुस्किराकर चुप हो गया । “जमनालालजी; अगर पटेल को यह विश्वास हो जाय कि छुआछूत हटाने से वह सीधा संवगे को जायगा, तो यदद समस्या अभी हल हो जाय ।” महात्माजी ने दहसकर कद्दा । हम सब लोग भी हँस पड़े । “श्राप तो महात्मा है, जो चाहें, कर सकते हैं ; लेकिन हम लोग तो......” काशी पटेल ने हाथ जोडते हुए कहा । “नापूजी ! काशी पटेल को आपका विश्वास थोड़े ही हे । उन्हें तो स्वर्ग जाने का भरोसा कोई 'और ही दिलावे; तो काम चे ।'' जमनालालजी ने मजाक मे कहा ।




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