भारतीय समाजवाद | Bhartiya Samajvad

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Bhartiya Samajvad  by जय प्रकाश - Jay Prakashश्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanadaश्रीमन्नारायण अग्रवाल - Srimannarayan Agrwal

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श्रीमन्नारायण अग्रवाल - Srimannarayan Agrwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ७ - करते हैं। ठीक है, दिक्षा में अच्छा स्कूल भी होना चाहिए, फर्नीचर होना चाहिए, साइंस का सामान होना चाहिए, यह कि दुनिया भर की चीज़ें होना चाहिए। पाठकगण अच्छे होने चाहिए। यह सब बात सही है, लेकिन शिक्षा में एक बहुत बड़ी चीज़ है और वह यह कि जिस व्यक्ति को शिक्षा देना है उसकी बाबत हमारे क्या विचार हैं; किस तरह का आदमी हम पैदा करना चाहते हैं। शिक्षा इसलिए दी जाती है कि समाज के लिए अच्छे नागरिक पैदा हों। यह कहा जाता है। अच्छा नागरिक कौन है ? अगर वह आदमी जिसको हम शिक्षा देते हैं दिक्षा पाने के बाद स्कूल के बाहर, कालेज के बाहर, यूनीवसिटी के बाहर निकला और उसके अन्दर वही राग-द्ष जो मामूली आदमी के अन्दर होता है, बना रहा, तो वह जिस समाज का अंग होगा वह समाज कंस होगा ? वह समाज उसी प्रकार का होगा। अगर मैं स्कूल-कालेज में शिक्षा पाने के वाद यह भाव लेकर निकला कि किसी तरह भी हो मुझको तो आगे बढ़ना है, अपनी तरक्की की वात करनी है, तो जिस समाज का मैं अंग हं वह समाज भी वैसा ही होगा, जिसमें दूसरों के अधिकारों का अपहरण होगा। अगर मैं दूसरों के अधिकारों का किसी प्रकार अपहरण कर सकता हूं तो जिस समाज में मैं हूं वह समाज भी दूसरों के अधिकारों का अपहरण करेगा। कहां दवांति रह सकती है ? शिक्षा का आदर्श कोई न कोई दूसरा होना चाहिए। कोई ठिकाने का आददां होना चाहिए। किस प्रकार का मनुष्य हम पंदा करना चाहते हैं, यह चीज़ अच्छी तरह से साफ़ और स्पष्ट होनी चाहिए। जब तक यह चीज स्पष्ट नहीं होती है तब तक हम ठीक-ठीक नागरिक भी तैयार नहीं कर सकते। यह भी जानने की ज़रूरत है कि जो समाजवादी व्यवस्था हम सोचते हैं, उस समाजवादी व्यवस्था में हम कसा मनुष्य चाहते हैं, किस प्रकार के नागरिक चाहते हैं। जो आज के नागरिक से किसी मानी में भिन्न हो, वह नागरिक कसा होगा? यह भी हमको आपके सामने स्पष्ट करना होगा। शिक्षा की कोई न कोई तस्वीर रखनी होगी । समाजवाद के इतिहास को थोड़ा सा सामने रखना है। पश्चिम में समाजवाद जब कायम हुआ या उसे कायम करने की जो कोदिश हुई, उसकी एक विशेष आवश्यकता थी। आप जानते हैं कि आज से चार-पांच सौ वर्ष पहले युरोप के आदमी बहुत गरीब थे, और अगर ग्रीस और रोम को छोड़ दें तो सभ्यता में उन्होंने कोई बहुत ऊंचा दर्जा हासिल नहीं किया था। आज से चार-पांच सौ वर्ष हुए कई नयी बातें पैदा हुईं। एक तरफ भारतवर्ष का रास्ता खुल गया, दूसरी तरफ अमरीका का रास्ता खुल गया। सम्पत्ति, धन उनके पास आया, साम्राज्य कायम हुए। स-२




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