शब्द और रेखाएं | Shabd Aur Rekhaien

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेकिन भारतीय भाषा विनान वै रचयिता वाजपेयी जी भाषा विज्ञान के क्षेत्र मे ही शुद्धता वे पक्षपाती नही रदं दश भक्ति के क्षेत्र मे भी वे चैसे ही सन्रिय रहे हैं। परदु य-कातर देश-भवत क रूप म बहुत कम सोग उदे पहचानत हैं । वे वारागार म रहे। उनकी पुस्तक जब्त हुई। चुनाव भी लडा उहोंने पर धन ने अमाव मं जो हो सकता था वही हुमा । अपन स्वभाव क' अनुरूप उस क्षेत्र मे भी वह उग्र पथयो बै साध रहे। उनक अतर मे धघकती अग्नि उह सदा अयाय मा प्रतिकार बरन को उकसाती रही । अनक बिन्दुओ पर उनस तीव्र मतभेद हो सकता है पर यह निश्चित है वि ऐसा व्यक्ति ने तो चाटुकारिता का शिकार हो सकता है ने किसी प्रलाभन का । वह हाता है बस सतत निस्पह और निर्भीक योद्धा । ठेते योद्धा की योजस्वौ वाणी ही भविष्य प पथ षो आलोकित बरती है। उनम अभिनंदन से एक प्रथ का सम्पादन किया था. कनखल व युरु- बुल बागडी के मनी पियों ने । उनका यह भी आप्रह था कि वह प्रय दिल्‍ली मे राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति वे द्वारा उह भेंट किया जाए लेकिन अन्तत यह विचार छोड देना पडा । स्वय उहोनि मन्न एक पत्र मे लिपा, “अबग्रय विमाचन यानी ग्रथ समपणकोवात छाडदीहै प्रयतो मुझे आप लोगो ने--इसवं लेखकों न--दिया है तब समपण विमोचन किसी भय से वया कराना |. ” लेविन जव मैंन उस ग्रथ की समीक्षा आवाशवाणी से की और उसकी प्रति ठ हं भेजी तो उन्हान मक्षे जो पत्र लिया बह उनके निश्छल गौर निमल हुदय था साक्षी है । प्यार की कसी ललव थी उनके अतरतम मे | कनखल (उ० प्र०) 28 मत्रैल, 1979 प्रिय प्रभाकर जी, पत्र मिला भर आलोचना की प्रति भी । मेरा प्रचार राहूल जी तथा माचाय किशोरी दास बाजपेयी / 13




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