शतक नामक पञ्चमकर्मग्रन्थ | Shatak Namak Panchamakarmgranth
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
460
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री - Kailashchandra Siddhantshastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्वकथन ५
काज पाव्यन्ममें भी हुजा है जदोँका वातावरण असाश्रटापिक दौवा
दै । दूसरी दरी यह हे कि अय साग्धदापिक वाडमय सम्प्रदायकी सीमा
लाघकर दूर दूरतक पहुँचने लगा दे । यह्दीतक कि जर्मन विद्वान् ग्टेझूनप
जो “उनिस्मस्--जैनदर्सान जसी सवसग्रादक पुस्तस्का प्रसिद्ध रेक दै,
उसने तो -वेताम्बरीय क्मप्रर्योका जमन भापाम उत्था भी कभीका कर
दिया ई ओर षद उसी विपयम पी० एनचू० डी० भी हुआ है । जतएव मैं
इस जगह थोड़ी बहुत कमतर्व जीर कर्मा सम्ब धी चचा रेतिहासिक
इृष्िसि करना चाइता हूँ ।
मैंने अमी तक जो कुछ वैदिक और अवैंदिक श्रुत तथा मार्गका
अवलोकन क्या दे और उसपर जो थोड़ा बहुत गिचार किया दे उसके
आधारपर मेरी रायमे कमंतत्त्वसे सम्न घ रसनेवाली नाचे ल्सी वस्तुश्थिति
सास त्ीरसे फलित होती दे जिसके अनुसार क्मतस्वपिचारक सब परम्प-
शर्ओकी शपा रेतिदासिक क्रमसे सुसङ्गत टो सकती दे ।
पिला प्रन कमतत्य माना या न्ट जर मानना तो क्सि आधार
पर, यदद था । एक पक्ष ऐसा था जो काम और उसके साधनरूप अयके
सिवाय अय कोइ पुरुपार्थ मानता न था 1 उसवी दृष्टिमें इइठोक दी
पुरुपाथ था । अतएव बह ऐस] कोइ क्मतत्व माननेके लिए याधित न था जो
अच्छे बुरे ज मान्तर या परलोक्वी प्राप्ति बरानेवाल हो । यही पश्न चाघाके
परपराके न मसे विख्यात हुआ | पर सायद्दी उस अति पुराने युगम भी ऐसे
चिंतक थे जो नतलाते थे कि सृत्युके बाद ज मा तर भी दे# | इतना हीं नहीं
# मेरा ऐसा अभिष्राय है कि इस देश में क्सी भी बाहरी स्यान से
भ्रवरसैक धर्म या याशिक मांग भाया भौर वह ज्यों उरयों फैलता गया त्यों त्यो
इस देशमें उस प्रवर्तऋ घर्मड़े आनेरे पढलेंसे दो विद्यमान निवर्तक घर्में झ
धिश्नपिक मर पकडृता मया ! यारि प्रवर्त परम दरी पाया श्रमे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...