बहता तिनका | Bahta Tinka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.47 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गति रुके गयी थी 1 लेकिन सावित्री उनकी श्राखिरी इच्छा का बहुत दिनों तक पालस हीं कर सकी थीं । शोक में वहूं दीम-दुनिया सबको भूल गयीं पागल होगयीं । कितना पैसा नष्ट किया प्रपता कितना नुकसानकिया झौर साथ में लड़की का भी यह वे नहीं जानतीं । उन्होंने सच्चे दिल से झजीत से प्रम किया था श्रपने हुदय का समस्त प्याद उसके चरणों पर न्यौछावर कर दिया था । शायद ऐसा प्रेम कभी किसी नें किसी से नहीं किया होगा । इसलिए वियोग का यह धक्का सम्भालने में काफी वक्त लगा । उस वक्त प्रस कलाई ने ही बचाया था । नाना उपलब्य में कारणु-अ्रकारण उनके पति मे उन्हें श्रनेक जेवरात उपहार में दिये थे । हाँ पति से ही थे । शोक में पागल हो उन्होंने श्मेक जेवरात सड़क पर फेंक दिये थे । कितने क्रीमती विलायती शीक्षो उन्होंने तोड़-फोड़ दिये थे। यह हाल देखकर श्रम्त में कैलाश से ही कीमती उठाकर बड़े कमरे में बंद कर दी थीं । इसीलिए श्राज भी उन्हें खाने को मिल रहा है । लेकिन उसी बचत फौरन लता की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी थी । झपनी बहिन यमुना के भरोसे मकान छोड़कर वे तीर्थयाता करने चली गयी थीं । कैलाश भी उनके साथ गया था । भारत के सारे तीथें- स्थाचों का प्रमण कर जब वे दो साल बाद लौटीं तो देखा कि. यमुना से लेता की शिक्षा का कोई प्रबन्ध ही नहीं किया है । बल्कि इससे पहले लता मे जो कुछ सीखा था बहु भी भूल गयी है । यमुना ने बिना उसकी श्राज्ञा के ही मकान में दौनचार किरायेदार श्रौर रख लिये हैं । उन सब नारंगनाओं श्ौर उनके यहाँ श्राने वालों ने लता को श्रघ पतन के रास्ते पर चलाने की पूरी तैयारी श्रौर व्यवस्था कर ली है । से उसने होंठ शरीर गाल रंगना सीख लिया है पान भी खूब खाती है शरीर जैसी भाषा व जिस तरीके से बातें करती है--वह श्रौर कुछ भी हो लेकिन श्रजीत प्रसाद की लड़की के उपयुक्त नहीं है । १४
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