अपनी कलम अपने विचार | Apni Kalam Apne Vichar

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Apni Kalam Apne Vichar  by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुनि श्रीमलजी के निर्मल व्यक्तित्व भे श्रद्धेय गुरुदेव की ज्ञानात्मा प्रतिविष्बित थी । वे अपने युग के महान्‌ ज्योतिधैर, कान्त्रण आचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज कै प्रिय हिष्य थे] संस्कत, प्राकृत आदि मापाओ कै प्रकाण्ड अभ्यासी, जैनागम एवं भारतीय दोनों के गंभीर अध्येना, प्रविचेता ये | उनके जान की प्रौढता, ग्रन्ना की सूक्ष्मता, एवं विचारे की उदारता को देख कर ऐसा प्रतीत होता था कि आचाये जवाहरलालजी महाराज की चिन्तन-व्योति दी उनके माध्यम से प्रसपुरित हो रही है । वे योग्य गुर के योग्य दिष्य थे, यह ॒निष्वर्पं सन्देह एवं राका से परे दै । पण्डितजी, जैसा कि हम सव्र उन्हे इस नाम से सबोधित करते थे, वस्तुतः पण्डितजी हयी थे- यथा नाम तथा गुण । उन की जिन्ासा प्राणवान थी} अध्ययन की पिपासा ओर बुभुत्सा के समक्ष अवस्था, अस्वस्थता एव व्यस्तता पराजित हो गई थी । कुचचेरा ( मारवाड ) चातुर्मास ८ सन्‌ १९५६ ) मे हम साथ रह थे । श्री अखिलेश जी, विजयजी ओर समढरीली यहं मुनित्रथी तो हमारे चिन्तन मण्डल मथीही, साथ ही श्री प्रेमाजजी वोहरा, श्री जबरचंदजी गेलडा आदि कुछ विचारक श्रावक भी चिन्तन मण्डल के सदस्य थे । एक बार चिन्न-धारा म भाष्यो की चची चली, तो पण्डितली के मन में मुझ से बृहत्कट्प धाप्य तथा व्यवहार भाष्य जैसे महान्‌ आचार ग्रन्थो का परि शीलन करने की जिज्ञासा जगी । वस जिज्ञासा जगने की देर थी कि बडी निष्टा एव कगन के साथ अध्ययन करने मँ जट गए ओर अल्प समय मेँ ही उन विशालकाय ग्रन्थो का पारायण कर गए। पंचाध्यायी जैसे गुरु गभीर ददन ग्रन्थो का भी वे घाराप्रवाह से वाचन करते चले जाते थे। वस्तु-बोव मैं उनकी मेधा बहुत कुशल थी । वात्वन करते-करते यदि कहीं कोई ग्रन्थी उलझती, तो वे कुछ क्षण रुकते, मुझ से विचार-चर्चा स




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