जीवनलीला | Jivanlila
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
480
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
काका कालेलकर - Kaka Kalelkar
No Information available about काका कालेलकर - Kaka Kalelkar
रवींद्र केलेकर - Ravindra Kelekar
No Information available about रवींद्र केलेकर - Ravindra Kelekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९३
माटात्म्य सितना अधिके है कि वहाके जितने ककर यतन सवं जकर
हते ह 1 ओर वैष्णवोके शालिग्राम गडकी नदीये साति ह 1
तमसा नदी चिष्वामित्रकी बहन मानी जाती है, तो कालिन्दी
यम्ना प्रत्यक्ष कालभगवान यमराजकी वहन ह।
प्रत्येक नदीका अथं है सस्कृतिका प्रवाह । प्रत्येककी खवी
अलग है। मगर भारतीय सस्कृति विविधतामें से अकताकों अत्पन्न करती
है। अत सभी नदियोको हमने सागर-पत्नी कहा है । समृद्रकें अनेक नामोमें
गुसका सरित्पति नाम वडे महतत्वका है। समुद्रका जल किसी कारण
पवित्र माना जाता है कि सब नदिया अपना अपना पवित्र जल सागरकों
उपेण करती हुं! “सागरे सवं तीर्थानि '
जहा दो नदियोका मगम होता टै, युस स्थानकों प्रयाग कहकर
हम पूजते ह । यह पूजा हम केवल सिसीलिये करते हं किं सस्कृतियोका
जव मिश्रण या समम होता है तव भुसे भी हम शुमे-सगम समन्नना
सीखें । स्त्री-पुर्षके वीच जव विवाह होता है तब वह भिन्न-गोवी ही
होना चाहिये, अंसा आग्रह रखकर हमने यही सूचित किया है कि अक
ही अपरिवननशील मस्कृतिमे सडते रहना श्रेयस्कर नहीं है । भिन्न
भिद सस्कृतियोकं वीच मेरुजोर पदा करनेकी कला ह्मे आनी ही
चाहिये । ' लकाकी कन्या घोघा ( सौराष्ट्र ) के लडकेके साथ विवाह
करती है ', तभी भुन दोनोमे जीवनके सव प्रदनोके प्रति अदार दृष्टिसे
देखनेकी शक्ति आती है। भारतीय मस्कृति पहटेमे ही सगम-सस्कृति
रही है । हमारे राजपत्र दूर दूरकी कन्यामोने विवाह करते थे ।
केकय दे्लकी केकेयी, गाधार्की गावारी, कामसूपकौी चित्रागदा, खेट
दक्षिणकी मीनाक्षी मीनलदेवी, विख्कुर विदेशसे आयी हुआ भुवी
ओर महाश्वेता -- जिस तरह कमी मिसाके वत्ताबी जा सक्ती ह ।
आज भी राजा-महाराजा यथासभव दुर दूरको कन्यायोसे विवाह
करते है। हमने नदियोसे ही यह सगम-सस्करेति सीखी है ।
अपनी अपनी नदीके प्रति हम सच्चे रहकर चलेगे, तो अतत समुद्रमे
पहुच जायेंगे । वहा कोगी भेदभाव नहीं रह सकता । सब कुछ अकाकार,
सर्वाकार गौर निराकार हो जाता है) 'सा काष्ठा सा परा गति '
{69
{दत +> ५
माइत का रा पड साफनाइ एटा च्य
कि [>
५ +
\ ।
१ हर
दर ९
न
शै 1 वः
1८ =
र भ
र न
का ध # +
ग ++ कि नी +
“ ~^ 4
सः द क भन € ++ ^~ न नन् न च 1.0 > रः
करपकयर जज कर पर. से क्न र
प 8. निर्दं नर्य लय -
[
र
तीन पमु लगातार दूसरी ठर ८
[र =+ र 4 09 नज 9 क नीत विवि
| भ्न कर । हा 1 \
न्नर # री ६ डी भ ०. (न
4 ८14 {~ ध |
क
जभ्य 1 > ची
४ # र ४
नः 9 | ~~ 071 कवपन्नदननरन लि की
¶. + > ५.4 । + च्यः +> अ क ॥ ^
2, 9 सेरिग हम
८ सद 2 ~र;
=+ ६6 { $^ (५. ४५ ^~
पिछले चुनाव के उ'ईने में
८५ ~ £ $ श्र १. £,
न
र; ण 7 3
ट री = £ थे वि ~.
नागन कपक्ः == @ =००-प मि प~~ । ऋणीमीिििीौी
नर लिन भ्ण, (ह = {म । कन न्द
८ ५ < ऐ
[> वि 9) 0 पद पर
टन दे ।1- ८ ८ $
है
(= ग न सका अं
ए ~ 4 = हैं जब नै भ
कोनो = पिक न
५, ~= ५ ष्र
एक जसे नम
जोत सि सकि = वि मनजप 2 नजन मन्यर
> ए. र
५५
जा है साला द कप वर ाक
हः €~ {+ ^ ५ ~+
$. ~~ ,---+ न = =
जी
५ ^ {~ ^ < क भ ~
यजि ५८क = ज भि = चो कीजो ० न ज भन रक न
रु श्र शा ५ न भन
(वि य त 1) यि नि र दो धा
= 1 शण हा
तर
श्न नान्मा वकम. क ०२-०सूहःभवभन मन
५ दून ~ य द ८
भ
च
द (+ ऋ प्छ
ठरराप्या डरे साल उ २.५ 4, ^~
4
कननपोिज-ज्े भ नको श् त (नकी = महा ण = न ममन कि
र~ £
#
द्व 4 ह ++ ज्व कि कर
(नलः निम न१ भकणके = का नि का जक (र ही श क
{4 + न्क ~ ५ ~“
^ = नः न है. भज क पिकर ५ भ #
||
५. कने ङि । च
क्या ममैनः == = शोनक [1 [ क
+ त ~ 4 ^=
म कोयो, = ४५ अतन = शोनक अ # हो, -क, शनी नी
~ न श ~
॥ के... नि च भ्र जक के
ह
न, पो [कनकः द्म कः निम, र
टः # नी नर
^
भ
१९ =+ + ॥ 6
५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...