जीवनलीला | Jeevan Lila

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Jeevan Lila by काका साहब कालेलकर - Kaka Saheb Kalelkarरवींद्र केलेकर - Ravindra Kelekar

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रवींद्र केलेकर - Ravindra Kelekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` 4 देते है । जिस संसारका प्रथम यात्री है नदी। भिसीकिमे पुराने यात्री लोगोंने नदीके जुद्गम, नदीके संगम भौर नदीके भुखको अत्यंत पवित्र स्थान माना है) | जीवनके प्रतीकके समाने नदी कासे आती है मौर कहां तक जाती . है? शून्यमें से आती है ओर অলী জলা জাতী ই । शून्य थानी अत्यल्प, सुक्ष्म किन्तु प्रवल; भीर्‌ अनंतके मानी ह विदारू भौर शांत । शून्य गौर अनंत, दोनों भेक्से गृढ है, दोनों अमर हैं। दोनों मेक दही ह) शूत्यमे से अनंत -- यहु सनातन लीला है। कौदल्या या देवकीके प्रेममें समा जानेके लिओ जिस प्रकार परत्रह्यने चालरूप धारण किया, असी प्रकार कारुण्यसे प्रेरित होकर अनंत स्वयं शून्यरूपं धारण करके हमारे सामने खडा रहता टै। जैसे जसे हमारी आकलन-रचित्त वृत्ती है, वैसे वैसे शून्यका विकास होता जाता है और अपना ही विकास-बेग सहन न होनसे वह मर्यादाका ओल्लंघन करके या भुसे तोड़कर अनंत बन जाता है--विंदुका सिंधु बन जाता है। * भानव-जीवनकी भी यही दशा है। व्यवितिसे कुटुंव, कुदुंबलसे जाति, जातिसे राष्ट्र, राष्ट्रसे मानव्य और मानव्यसे भूमा विश्व --- जिस प्रकार हृदयकी भावनाओंका विकास होता जाता है। स्व-भापाके हारा हम प्रथम स्वजनोंका हृदय समझ लेते हँ गौर अंतमे सारे विउवका आकलन कर ठेते हँ । गांवसे प्रान्त, प्रान्तसे देश और देशसे विश्व, जिस प्रकार हम “स्व का विकास करते करते “सर्व में समा जाते है। नदीका और जीवनका क्रम समान ही है। नदी स्वघर्म-निष्ठ रहती है और अपनी कूल-मर्यादाकी रक्षा करती है, जिसीलिओ प्रगति करती है। और अंतममें नामरूपको त्यागकर समुद्रमें अस्त हो जाती है। अस्त होने पर भी वह्‌ स्थगित्त या नष्ट नहीं होती; चलती ही रहती हैं। यह है नदीका क्रम । जीवनका भौर जीवन्मुक्तिका भी यही क्रम है। बया जिस परसे हम जीवनदायी शिक्षाके ऋमके वारेमें वोध लेंगे ? १९२२




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