अग्नि - पुराण भाग - 2 | Agni - Puran Bhag - 2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ } { प्रस्नुता
है, इपमे तमिक भी विचार नरी कस्या चादिषु} भानो महा्ठ--दए मन्व
बालकों को दान्टि होती है 0 ४ 0 श४५॥ ६ 1
नमो हिरण्यवाहुव पतयनुयाकसप्तकम् 1
राजिका कटुतैलाक्त उुहुष्च्छवुनाक्नीम् ॥५७
ममों व किरिकेस्यश्व पदालक्षकृतनर ।
राज्यलक्षमीमवाप्नोति तथा चिस सुवर्णकम् ॥५८
इमा सद्रायति तिकलरहोमाञ धनेपाप्यते ।
दूर्वाहोमेन चाऽ्येन सर्व्याधिदिवजित. ।५५६
श्राशु शिक्षान इत्येतदायुघाना च रक्षण ।
सड परमि कथित राम सर्वशबरुनिवहंणमु 11६०
याश्च भति चुहुपाह्त पञ्चभि ।
आज्याहृतीना धमज चक्षुरोगाद्विमृच्यते ९१
श नो वनस्पते यूहे होम स्याद्वास्तुदोपनुद्।
अनायर पि हुत्वाऽज्य द्रप नाऽप्नोतति केनचिद् ॥६३
रपा फेनेति ताजाभिहं स्वा जयमवाप्नुयात् 1
भद्रा इतीन्दि्हीनि जपन्त्पालमकतेन्धिप १६९
(नमो हिरएय बाहव ईष सात घनुदाक की कहुदे तेल से प्रक्त राई
पी भाहूवियाँ देवे तो शपुओों का साथ करने दादी होती है ॥ ३७ ॥ नमो
च विरकेयरश्न-दस मन से पन्य दल दो एक लदप आहृतियाँ देवे हो राब्य
लक्ष्मी वी श्ाहि होती है पीर डिन्य दलों से देये दो सुदर्ण का लकभ होता है।
1 ५८॥1 यायम भन्द ऐे हिलो के द्वारा हवन करे तो घन दो प्रात
करता है। दूरी के होम में घून के हवन से समस्त ब्याधियों है रद्वित हो
जाता है ॥ ९६ १. आयु दिशातो-इस मनन का प्रयोग भायुधों को रक्षा में
दिया जाता है । हे राम ! संग्राम में दद मन्त्र के कहने है समद्धु
वा निदहूण होता 1; ६० ॥ है द्विज । दाजघ्र म -दन् प्वो से एर पर्त
चार इवन बरे घोर षृदी पटूनिणी देवे हो है घमन्त ! चधुग्रो के रोग मैं
धे मृक्तिदो उतो है} ६१॥ दरों वनस्पहें-रस मखे पर में होप परे
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