सिंहावलोकन भाग - 3 | Sinhavalokan Bhag - 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ सिंहावलोकन-३
गांधी जी ने व्यथे में हमारी नित्दा का प्रस्ताव लाहौर कांग्रेस में रखा । इसकी क्या
जरूरत थी ? गांधी जी के प्रस्ताव को पास होने में कितनी कठिनाई हुई ? आप स्वयं
समझ सकते हैं जनता की भावना क्या हे ? आपको तो हमारी सहायता करनी चाहिये ।”
कृपलानी जी की जैसी आदत है उन्होंने कहा-''अपना लेक्चर तुम रहने दो । यह
बताओ कि चाहते क्या हो ?” उत्तर दिया-“आपकी माफंत हम केवल आधिक
सहायता की ही आला कर सकते हैँ 1
कृपलानी जीने हामी भरी किं यदि हम इस बात का आदवासन दे कि भविष्य
में हम कोई हिसात्मक घटना नहीं करेंगे तो वे हमारे सब साथियों के साधारण गुजारे
के लिये आर्थिक सहायता की जिम्मेवारी ले लेने के लिये तैयार हैं ।
मुझे यह रातं कुछ अजीब सी लगी हम जो काम कर सकने के लिगं सहायता
चाहते थे कृपलानी जी वहीं काम न करने की शर्त लगा रहै थे । मैंने उत्तर दिया--
“छिपे रह कर केवल पेट भर लेना तो बड़ी भारी समस्या नहीं है । हम लोग कहीं
भी छोटी सी मनियारी या पान की दुकान करके या किसी कारखाने में मजदूरी या
मुंशी की नौकरी करके पेट पाल ले सकते हैँ । सहायता की जरूरत तो अपना आन्दोलन
चलाने के लिये ही है ।”
इस पर कृपलानी जी बिगड़ उठे--“तुम लोगों के सिर पर तो दहीद बनने का
जुनून चढ़ा है । हमारा तुम्हारा कोई सहयोग सहीं हो सकता ।
तके करते से कोई लाभ नहीं था पर इतना मैंने भी कह ही दिया--'आचायें जी,
यहू कोई बहुत बुरा जुनून तो नहीं है ।”'
बाद में जुगलकिशोर जी ने बताया कि कछृपलानी जी मेरे लिये संदेश दे गये हैं
कि मैं कभी मेरठ जाऊं तो वहां गांधी आश्रम में उनसे मिल सकता हुं । उसके कई
दिन बाद मेरठ जाने का अवसर हुआ तो गांधी आश्रम का भी चक्कर लगा लिया)
कृपलानी जी उस समय वहां नहीं थे । आजकल उत्तर प्रदेश सरकार के यातायात
विभाग के मंत्री विचित्र नारायण जी शर्मा मिले । उन्होंने परिचय पाकर बताया कि
कपलानी जी मेरे लिये एक लिफाफा छोड़ गये हैं । लिफ़ाफा ले जाकर एकान्त में
खोला । उसमें सौ-सौ रुपये के दो या तीन नोट थे और साथ ही एक पूर्जा था-- पु)
एना50081 06605” (निजी आवश्यकता के लिये) अर्थात् कृपलानी जी यह नहीं
चाहते थे कि उनका दिया रुपया हमारे 'हिसात्मक' आन्दोलन में लगे । यह कैसे हो
सकता था ! हम स्वयं ही उस, आन्दोलन के लिये जिन्दा थे ।
इस बार वृत्दाबन जाने का प्रयोजन यह था कि स्वयं हंसराज की खोज में जाने
से पटले प्रकाशवती को कुछ दिन के लिये किसी सुरक्षित स्थान में छोड़ जाऊं ।
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