अतीत से | Ateet se

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बछिया के ताऊ
पूज्य ताऊ जी यानी श्री अमृतलाल नागर जी को मैंने पहल पहल कब देखा था
याद नही पर मुञ्चे स्पष्ट रूप से बताया गया था कि वे मेरे ताऊ हैं क्योकि पिताजी से वे
एक वर्ष बड़े है। उन्होने मेरे चाचा सम्बोधन को झिडक कर अस्वीकार कर दिया था'
फिर जब भी पूज्य पिताजी के साथ में उनसे मिलती तो पिताजी हमेशा मुझे उनकी बछिया
कहकर ही सम्बोधित करते कराते। एक बार किसी ने इस सम्बोधन की सार्थकता पर
जिज्ञासा व्यक्त कर दी तो समाधान स्पष्ट था- बछिया और बछिया के ताऊ ।: ताऊजी भी
इसे इतनी ही विनोद प्रियता से लेते थे पिताजी से कहते तुमने मुझे बछिया के ताऊ कहा
मे इसका बदला तुमसे जरूर लूँगा।
ताऊजी से मेरा सघन सम्पर्क मेरी गुडियो की प्रदर्शनी के दौरान हुआ। १९६५ में
मेरी यह प्रदर्शनी लखनऊ के हजरतगज स्थित सूचना केन्द्र मे लगी थी। तत्कालीन
राज्यपाल श्री गोपाल रेडी ने सका उदघाटन किया- ओर सयोग से प्रेस ओर पल्लिक दोनो
ने ही इसे बहुत सराहा था। परिणामत इसके माध्यम से मुझे लखनऊ की तमाम
लब्धप्रतिष्ठ हस्तियो से मिलने और उनके आशीर्वाद पाने का अवसर मिला था। हजरतगज
एक मुख्य बाजार तो है ही- सूचना केन्द्र एक सम्मानित स्थान भी माना जाता है। इसलिए
अधिकाश लोग अखबार पढ़कर ही गुहिया देखने आए थे। दूसरे दिन अन्य महानुभावो मे
कविवर श्री भगवतीचरण वर्मा जी भी पधारे थे ओर मेरी गुडियो को कला के अन्तर्राष्ट्रीय
स्तर पर लिखित रूप से स्थापित कर गये थे। उन्होने अपना सुलेख इन शब्दो मे बधा था-
कला की उत्कृष्ट कृतियाँ इन गुडियो के सम्बन्ध मे मुझे इतना ही कहना है।
भावना साथ मे शिल्प इनका सुन्दर समन्वय मुझे देखने को मिला। भारतीय कला का यह
निरूपण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का कहा जा सकता है।
तभी मुझे ताऊजी की बडी याद आई। मैने उन्हे फोन पर अपनी गुडयों देखने के
लिए आमत्रित किया तो उन्होने आश्चर्य व्यक्त करते हूए बताया कि अखबार मे उन्होने भी
खबर देखी थी पर मै तो समाजशास्त्र की डाक्टर हू वही पढाती हू- मेरा गुडियो से क्या
सबध > मैने कहा आप आकर देखे ओर आशीर्वाद दे। अगले दिन ताऊजी पधारे। एक
एक गुडिया को उन्होने पूरे मनोयोग से देखा देखते रहे। मेरी कई गुडियाँ भाव प्रधान थी
कुछ मे कवियो की पक्तियो को साकार करने का प्रयास धा ओर कुठ नृत्यकला के विकास
क्रम को दर्शाती थी अथीत मदिरा से होटलो तक नृत्यकला की यात्रा की विविध स्थितियो
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