प्राचीन भारतीय राजनीतिक विचार एवं संस्थाएं | Prachin Bhartiya Rajneetik Vichar Avam Sansthaen
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
502
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् प्राचीन भारतीय राजन तिक दिचार एवं संत्यायें
है जो कि न बेवल व्यव्तिगत स्प से दरदू सामाजशिद रूप से भी कल्पायादय
है 1 > मटामारतमे श्रजुंन ने दतादा है कि अच्छी नर्ह प्रयोग में साया टरा
दण्ड प्रजाजनोकी रक्षाक्रना द । उदाटरणाके निए ज; वुभ्पते लतो
है तो वह फूबव की फटकार पड़ने पर डर जानी है तथा दष्द
ने
प्रसबलित हो उचतों है।* इस प्रदार प्राचीन मारतीय प्रन्यों
महत्व वो समझा या शरीर राज्य के संगठन तया वार्यों से सम्दघिव शास्त्र को
दप्डनीति कहना ही उपयुक्त समझा । सहाभारत में ब्यास जो द्वारा युधघिप्ठिर
को यह सुम्ाया गया है कि जो व्यक्ति वेदान्त, वेदध्रयी, दाना ठया दष्ड नोति
का पारगत दिद्टान हो उचे दिसी मी कार्य में निदुवत दिया जा सकता है ।
क्योकि ऐसा व्यक्ति बुद्धि कौ परावश्प्ठा को पटुचा टूपा होता है । *ै इर्ड
नीति के माध्यम से भ्रप्राप्य वस्तुप्नों को प्राप्त किया जाना है, प्रप्त वस्त्रौ
को रसा वी जाती है दौर रक्षित दस्तुमों को श्रमिदृद्धि की जाती है । उप्टा
ने अपने ग्रस्य का नाझ दप्इसीति ही रखा है मटामास्तमे नौ दण्डनीति
नाम के एक ग्रन्थ का उनस्लेख श्राठा है जिन रचदित! प्रजापति को कहां
गया है । मनु के बधनानुमार दष्ड देने वाला व्यक्ति राजा नहीं है मपितु स्वयं
दण्ड ही शासक है । * राज्य में दप्ड दे इस अत्यधिक सहत्व के परिणाम
स्वरूप ही शासकों के कार्यो तथा समाज के कन्याथ का दर्यन बनने दल
शारंवर को दष्ट नोहि के नाम से जाना गया 1 कौटिन्य के झंगास्थ को थी
कई स्थानों पर दष्ट नीति के नाम से हो पुकारा गया! है । उम्नस् पा प्र, पति
द्वारा शासन तत्र पर लिखित प्रस्य मो दप्ड नोति के नास से प्रदिद्ध हैं 1
झागे चल कर रादनीति शास्त्र दिपय के लिए म्रर्थशास्त्र घब्द वा
प्रयोग जिया जाने लगा । मि० डायसवाल ने श्रधगान्वर का जनपद सम्दघी
शास्त्र (0०2४ दा. ए०वणाण्याधट्दीफर] वहा हैं । देखे दरदमान समय में भ्र्थ-
शास्त्र शब्द का श्रयोग परायः सम्पत्ति जास्त (दत्ण्व्णा 5) चे निष् हिया
जाता है बयोदि “भय शब्द प्राय: पैसा या सम्पत्ति का समानायंक्र हूँ ।
ौडिल्य की यह मान्यता है कि शब्द का प्रयोग न केदल व्यक्तियों के
व्यवमायों या घन्ों नी को निदेशित करने के लिए हो श्यि था सेवया है डिस्तु
उस भूमि के लिए मी दिया जा सता हैं जिस पर रह चर कि उनके द्वारा
ब्यवनाय का संचालन क्या जाता है । सानव जोवन के संचालन का झाघार
भुमि है ्पवा यों कहिये कि भूमि में हो व्यक्ति समाहिय रदवे हैं । ग्रयंदास्व
एक ऐसा दिज्ञान है जो कि यह बताता है कि मूमि को कंधे प्राप्त किया जाये
तथा किस प्रकार से उसको रज्ञा वी जायि । च्ैटित्य क्ते ग्रयेयान्तर मनवयुतर
मुसि की प्राप्ति एवं उसके रलण के उरारदों का दिग्दर्नेन कराठा है । वौटिल्य
ने दप्डनीति शब्द को च्या करते हर्ं वाया है कि इसका सम्दघ चार दारदो
1. कौटिल्य, अर्यशास्त्र, हे (४)
2. महामारव-घान्तिपवं, १५ (३१)
3. मदामारव-घान्ति पवे, २४ (१८)
4. “स राजा पुरषो दण्डः तनेता यस्माच दः 1
--मरुस्पृति, ७ (७)
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