श्रावकधर्मप्रदीप | Shrawak Dharm Pradeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
बुद्धिमान श्रौर घर्मप्रेमी थे । इजारों व्यक्तियोंके बीच बेठकर ऐसे तकंपूर्ण व्यंग वचन बोलते ये कि पूरी
सभा दस पढ़े पर स्वयं मौन । कटनीकी जनता श्राज भी उनको याद करती है ।
जीवनके शझन्तमें झापकों देखनेके लिए श्रनेक प्रमुख जैनजन श्रापके घर गए. थे । उसी समय श्रापने
श्रपने छोटे भाइंकी इच्छानुसार प्रदय एक मकान तथा दनुमानगंजमें बहुत रुचिसे बनाया हुश्रा श्रपना एक
कांचवाला मकान दोनों दानदेठु दे दिए । विंहुड़ी व घनियाँ गाँव भी दानमे दिये थे जो जमीदारी उन्मूलन
कानूनके श्रन्तगंत राज्य सरकारने ले लिये हैं ।
उनके स्वरगंवासके पश्चात् दोनों भाइयों की ध्मपत्नियों द्वारा उक्त संपत्तिका विधिवत् रजिस्टडे
ट्र करा दिया गया है | श्रोर उनकी उदारता व इच्छासि ही इसी ट्रष्टकी श्रोग्से १२० ०) एक इजार दोसौ रुपया
इस प्रंथके प्रकाशन देठु श्री ग० वर्णी जेन अंधमाला काशीको दिय गये है जिससे यदद ग्रंथ प्रकाशमं श्ाया है ।
इस श्रुतमक्तिके लिए. हम उन दानों माताश्रों व ट्र के ट्राष्टयोंके अत्यन्त श्रामारी है ।
फूलचन्द्र शाख्री
श्री ग० बर्णी जैन मन्थमाला
सदेनीचाट, बनारस |
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