जैनपदसागर भाग - 1 | Jainpadsagar Bhag - 1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १1
१४ ७७ र
॥ 1
शित्रमग-द्रस्तावन राये द्रख ३9
शेष सुरेश नरेश रद तोहि, पार न कोई पाविजी ७२
श्रीभरदइतछवि लखि दरिदे भानंद अनुपन छाया ह १८
श्रीआदिनाथ तारन तरने .. . ` ८8
श्रीगुद ह उपमासो पेषे वीतराग गुणधातै वै १५३
श्रीजिन तारनद्दारा थे तो मोनें प्यारा छागो राज ११०
श्रीजिनदेव न छाड हों सेवा मनवचकाय हो ६३.
ध्रीजिनपूजनको दम आये, पूजत दी दुखद मिटाये २१.१०४
श्रीघुनियाजत सम्रतासंग, कायोत्तगं समादित भंग ,१५१
श्रीजिनव्रर द्र आज्ञ क्त सौषप्र पाया ६
त ।
सव मिल देखो दे श्दारी दै, त्रिशलावाल वद्नरसाल ३४
प्म-भरम परिदायी साधुजन, चम भारा विहाय १५४
सममत क्यों नहि वानी अक्ञानी जन १
सम्प्रग्त्तान घिना जगनें पदिचाननवाला कोई नदीं १७४
सारद तुम परसादू्तें आनंद उर भावा १७
सांची तो गंगा यह चोतरागंघानी ` १३०
सांचे चंद्रप्रमू खुलदाय - ६$
खामीजी तुम शुण मपरपार चंदीञ्वल अधिकार ६२
-खांमीजी खाच क्षर तिद्वारी 9४
लामो मोहि अधनो जन तारं, या धरितो अत्र चितधाये ६१.
खापरी रूप अयूप विशाल मन मेरे ब्त ६७
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