जैनपदसागर भाग - 1 | Jainpadsagar Bhag - 1

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Book Image : जैनपदसागर भाग - 1  - Jainpadsagar Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १1 १४ ७७ र ॥ 1 शित्रमग-द्रस्तावन राये द्रख ३9 शेष सुरेश नरेश रद तोहि, पार न कोई पाविजी ७२ श्रीभरदइतछवि लखि दरिदे भानंद अनुपन छाया ह १८ श्रीआदिनाथ तारन तरने .. . ` ८8 श्रीगुद ह उपमासो पेषे वीतराग गुणधातै वै १५३ श्रीजिन तारनद्दारा थे तो मोनें प्यारा छागो राज ११० श्रीजिनदेव न छाड हों सेवा मनवचकाय हो ६३. ध्रीजिनपूजनको दम आये, पूजत दी दुखद मिटाये २१.१०४ श्रीघुनियाजत सम्रतासंग, कायोत्तगं समादित भंग ,१५१ श्रीजिनव्रर द्र आज्ञ क्त सौषप्र पाया ६ त । सव मिल देखो दे श्दारी दै, त्रिशलावाल वद्नरसाल ३४ प्म-भरम परिदायी साधुजन, चम भारा विहाय १५४ सममत क्यों नहि वानी अक्ञानी जन १ सम्प्रग्त्तान घिना जगनें पदिचाननवाला कोई नदीं १७४ सारद तुम परसादू्तें आनंद उर भावा १७ सांची तो गंगा यह चोतरागंघानी ` १३० सांचे चंद्रप्रमू खुलदाय - ६$ खामीजी तुम शुण मपरपार चंदीञ्वल अधिकार ६२ -खांमीजी खाच क्षर तिद्वारी 9४ लामो मोहि अधनो जन तारं, या धरितो अत्र चितधाये ६१. खापरी रूप अयूप विशाल मन मेरे ब्त ६७




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