भारतीय नेताओं की हिन्दी - सेवा | Bharatiya Netayo Ki Hindi Seva
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
137 MB
कुल पष्ठ :
479
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ ज्ञानवती दरबार - Dr. Gyanvati Darbar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द;
महत्ता को स्वीकार किया । महात्माजी ने हिन्दी को जौ स्थान दिया और उनके
प्रसाद से हिन्दी का जो अभ्युदय हआ, वह हमारे सामने की बात हैं । इन बातों का
स्वभावतः यह् परिणाम हआ किं हिन्दी बहुत व्यापक रूप में राष्ट्रीय भावनाओं
की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई । यों तो पिछले सौ वर्षों में सभी भारतीय
भाषाओं ने अभूतपूर्व प्रगति की है और हमारे देश में कई ख्यातनामा लेखकों ने
जन्म लिया है, परन्तु जैसा कि श्रीमती दरबार ने लिखा है, इस दृष्टिकोण से हिन्दी
बहुत ही भाग्यशाली रही है ।
न मैंने ऊपर इस बात की ओर संकेत किया है कि संस्कृत वाऊमय के विकास
में कई ऐसे व्यक्तियों का सक्रिय योगदान हुआ, जो शासक या सेनानी के रूप में
- राजकाये में आचुड़ान्त डूबे हुए थे। हिन्दी को भी इस बात का गौरव है कि पिछले
सौ वर्षों में जिन लोगों को अपने अश्रान्त परिश्रम से हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद
पर आसीन कराने का श्रेय है, उनमें कुछ सार्वजनिक कार्यकर्ताओं का मूर्धन्य
स्थान है । इसी प्रकार हिन्दी के वाङ्मय मंडार मे राजनीतिक क्षेत्र मेँ काम करने-
वालों ने ऐसी कृतियां अर्पित की हैं, जिनसे उसकी श्रीवृद्धि हुई है । सच तो यह है
कि आज से कुछ दिन पहले तक हिन्दी कौ सेवा करना भी एक प्रकार का
राजनीतिंक कार्य था । जो लोग इस काम में पड़ते थे, उनको तत्कालीन सरकार
की जप्रस्तता का भाजन बनने के लिए प्रस्तुत रहना पड़ता था । सरकार की कोप
दृष्टि के कारण लिन सम्पादकों को कष्ट उठाने पड़े और जो समाचारपत्र काल-
कवलित हो गये, उनमें हिन्दी के सेवको की पर्याप्त संख्या थी ।
कुछ दिनों के बाद ये बातें अतीत के गते में चली जायंगी और लोग इन्हें भूरू
जायंगे । श्रीमती दरबार ने बड़े परिश्रम से यह सामग्री एकत्र की है । उन्होंने
'दिखलाया है कि किस प्रकार के पर्यावरण में जन-जीवन की उदीयमान भावनाओं
ने जननायकों और जनसेवकों को प्रोत्साहित और स्फूत किया और किस प्रकार
हिन्दी-साहित्य का विकास नेताओं से अनुप्राणित हुआ । साहित्य के द्वारा अशिव
की क्षति भौर शिव की स्थापना का सन्देश घर-घर पहुंचता है । कान्तासम्मित
उपदेश-विधि से साहित्य जन-जीवन मेँ उदात्त गुणों का उद्रेक करता है और इस
प्रकार जनता को सद्धमं के कठिन मार्ग पर चलने की शक्ति प्रदान करता है।
1 मङ्े श्रीमती ज्ञानवती दरबार की यह् कति सर्वथा उपादेय प्रतीत हुई ।
रष्टरीय आन्दोकन और ऐतत्कालीन हिन्दी-साहित्य के विद्यार्थी को इससे बहुत...
144 4. ` सहायता मिलेगी । 1
स्स्परेरल्लनक (शक्राच `
दिसम्बर, १९६१
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