गांधी जी की यूरोप यात्रा | Gandhiji Ki Europe Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.77 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गांधीजी की यूरोप-यात्रा
(१)
किंग्सली हाल का निमंत्रण
१९३१ में जब गांधीजी विलायत भ्राये थे, तव हमारे किंग्सलो हाल में
थे। यह किंग्सली हाल लन्दन के पूरी भाग के बड़े भारी औद्योगिक
बीचों-वीच सेवा का एक केन्द्र है; या यूँ कहो कि आश्रम है । अक्सर
प्रपास के रहने वाले लोग ही इसे चलाते हैं और इसी के द्वारा वे अपनी
पामाजिक कस्याण और आत्म-विकास को निजी ग्रयल्नों से बढ़ाते चलते
पर्में दस स्वयं-सेवक पूरे दिन काम करनेवाले हैं । इस कार्य के
उन्हें भोजन, साप्ताहिक सात दशिलिंग और रहने के लत पहले मजले
हुए कमरों में से एक कमरा दिया जाता टै। ये लोग धर्म, जाति;
दे के भेद-भावों के, भूल कर सम्मिलिति भोजन, व्यवस्था, लिखना-पढ़ना,
दे और प्राथना आदि करते हैं । किंग्सली हाल का मुख्य ध्येय प्रभु दैसा
गये हुए ईश्वर-सानिध्य के अलुभव का अनुशीलन ही है। गांधीजी के
और किंग्सली हाल के आदशं और आकांक्षाओं में चहुत ही साम्य है ।
५ गांधीजो के आश्रम का अजुभव था हो; अतः मुख झुरू से पूण विश्वास
उन्हें लन्दन की किसी और जगदद ठ्दरने की अपेक्षा इसी वो मुहल्ठे में
अधिक उचित प्रतीत होगा। इसी कारण जब मुम्हे मालूम हुआ कि *.
परिपद में आ रहे हैं तो मेंने उन्हें किंग्सली हाल में ठद्दरने का निमन्रण'
उन्दोंने जवाब में लिखा--'इसमें कोई थक नहीं कि अन्य जगहों ॥
केंग्सली हाल में रहना मुझे अधिक अच्छा लगेगा ।. परन्वु स्वागत-मण्डली
! का और कहीं प्रवंध कर रही होगी । उनके निणय का उल्लंघन में न
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