राजनीति से दूर | Rajneeti Se Door
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो मस्जिदें १७
१३:
कद, (५ =
द् सस्जद्
ग्राजकल अ्रखवारों में लाहौर की गहीदगंज मस्जिद की
प्रतिदिन कुछ-न-कुछ चर्चा होती है । शहर में काफी खलबली
मची हुई है। दोनों तरफ मजहबी जोदा दीखता है। एक-दूसरे
पर हमले होते हं, एक दूसरे की वदनीयती की रिकायते होती हैं
श्र वीच में एक पंच की तरह भ्रंग्रेज-हुकुमत ग्रपनी ताकत दिख-
लाती है । मुभे न तो वाकयात ही ठीक-ठीक मालूम हैं कि किसने
यह सिलसिला पहले छेड़ा था, या किसकी गलती थी, और न
इसकी जांच करने की ही मेरी कोई इच्छा है। इस तरह के
धामिक जोश मे मभ वहुत दिलचस्पी भी नदीं है । लेकिन दिल-
चस्पी हो या न हो जव वह दुर्भाग्य से पैदा हो जाय, तो उसका
सामान करना ही पड़ता है । में सोचता था कि हम लोग इस देश
में कितने पिछड़े हुए हैं कि भ्रदना-श्रदना-सी वातों पर जान देने
को उतारू हो जाते हैं, पर श्रपनी गुलामी श्रौर फाकेमस्ती सहने
को तैयार रहते हैं ।
इस मस्जिद से मेरा ध्यान भटककर एक दूसरी मस्जिद की
तरफ जा पहुंचा । वह एक बहुत प्रसिद्ध ऐतिहासिक मस्जिद है
ग्नौर करीव चौदह सौ वर्ष से उसकी तरफ लाखों-करोड़ों निगाहें
देखती श्राई हैं। वह इस्लाम से भी पुरानी है श्रौर उसने श्रपनी
इस लंबी जिंदगी में न जाने कितनी वाते देखीं । उसके सामने
वड़-वड़ साम्राज्य भिरे, पुरानी सत्तनतों का नारा हृश्रा, धामिक
परिवर्तन हुए । खामोरी से उसने यह सव देखा, श्रौर हर करति
श्र तबादले पर उसने ग्रपनी भी पोलाक वदली । चौदह सौ वपे के
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