श्री भगवद्रीतारहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र | Shri Bhagavaditarahasya Athava Karmyog Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीतारहस्य श्रथवा कर्मयोगशास्त्र । श्दे #९ अआ#च्#+ * / / ६ भा गीतारहस्य का सुल मसबिदा चार पुस्तकों में था यह उल्लेख ऊपर किया गया है। उन पुस्तकों के सम्बन्ध में विशेष परिचय इस प्रकार हैः-- पुस्तक |. विषय।... पृष्ठ । लिखने का काल । १ रदस्य, श्र. १ से ८। 9 से ४१३। २ नवंबर १३१० से द डिसस्बर १३१० झ सदा १३ डिसेस्बर १४१० से. २ रहस्य, प्र. 8 से १३। 9 री हक ३ रहस्य, प्र. १४ से ११। 9 से 9४७ _ ) वह १३१-र४४ ओर | क्षण । रे ४०१--४१२. क १४ जनवरी १६११ हर «न सुख, समपंण ओर है से शोकों का श्रनुवाद ।... २४१-२४७ ३० जनवरी १४११. अध्याय १-३ । र२४४-३४४. हि गेकों १-३ ४०१, १० साचे १४8११ ' डोर सन, | २००-२०४ ले मव्याः ३८१-४०७, ३० माचे १४११ थे ३४१३ ४३ ग्रस्ताचना । ) इ७१-३८४ पुस्तक की अनुक्रमणिका, समपैण और अरस्तावता भी लोकसान्य सहोदय ने. कारायूह में लिखी थी और ज़गद जगह पर कोन कौनसी बातें रखनी थी उन की सूचना भी लिख कर अन्थ परिपूर्ण कर रक्‍्खा था । उस पर से उन को कारागृह' से अपने जीते जी मुक्कता होगी या नहीं इस बात का सरोसा नहीं था, और मुक्कता न होने के कारण आपने परिश्रमपुवंक संपादन किया हुआ ज्ञान और उस से सूचित विचार व्यथे न जायें बहिक उन का लाभ आगे की पीढी को सिले यह उन की श्रत्युत्कट इच्छा थी, यों ज्ञात होता है । पुस्क की अनुक्रमणिका पहले दोनों पुस्तकों के आरम्भ में उन पुस्तकों के विषय की ही है । पुस्तक का मुख्य और समपैण तीसरे पुस्तक में २४१ से २४७ ष्टों में है, और प्रस्तावना चौथे पुस्तक में ३४१ से ३४३ और ३७५ से ३८४ ष्टों में है। कारायूह से मुक्कता होने पर प्रस्तावना में कुछ सुधार किया गया है और वह जिन्हों ने प्रका- शनकाल में सहायता दी थी उन व्यक्तिनिर्देशविषयक है। इस विषय में प्रथमा- वृत्ति की प्रस्तावना के अन्तिम परि्ाफ के पहले के पेंरिप्राफ में लिखा है । अंतिम परिप्राफ तो कारायूह में ही लिखा हुआ था । उन में से पहली पुस्तक में पहले झाठ प्रकरणों को ' पृर्वांध * संज्ञा दी गई है (वह पुस्तक के प्ष्ठ के चित्र से ज्ञात होगा ); दूसरी पुस्तक को उत्तराध भाग पहला आर तीसरी को उत्तराध॑ भाग दूसरा इस प्रकार संज्ञाएँ दी गई हैं। उस पर से अंथ के




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