कबीर ग्रंथावली | Kabir-Granthawali

Kabir-Granthawali by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुरदेव के भली भर जु गुर मिल्या नहीं तर दाती हांखि । दीपक दिष्टि पतंग यू पड़ता पूरी जांखि ॥ ६ ॥ माया दीपक नर पर्तेंग श्रसि इवें पढ़त । है कभीर गुर ग्यान थे एक श्राघ उवसंत ॥ २० ॥ सतगुर बपुरा क्‍या करे जे सिपद्दी मांहै चूऊ । वरस्यू प्रमाधि ले ज्यू बंसि बजाई फूस ॥ २१ ॥। संसे खाया सकल जुग संसा किनहूँ न खद्ध । जे रुर अप्पिसं तिनि संसा चुखि चुणि खद्ध ॥ ९२ 1 येतमि चै।की बेखसि करि सतयुर दीन्हों घीर | निरमे हाई निसंक भजि केवल कहे कबीर ॥ ९३ ॥ सतरुर मिट्या त का भया जे मनि पाड़ी माल । पासि बिसेड़ा कप्पड़ा कया करे चाल ॥ २४ ॥ बूड़ थे परि ऊबर शुर की लद्वरि चमंकि | मेरा देख्या जरजरा तत्र ऊतरि पड़े फरकि ॥ २४५ ।। गुर गोपिंद ते एक है दूजा यह झाकार | श्राप मेट जीवत मरे ता पाये कतार ॥ रई ।| कबीर सतगुर नां मिलया रही अधूरी सीष । जती का पहरि करि घरि घरि माँगै मीष्र ॥ २७ र१ खनप्रसोघिए । जांखे बास जनाई कूद । हू रे ते खनसेछ जुग । हू २३ | खनजाजरा 1 २६ दस दाहे के श्रागे ख प्रति में यह दोहा है कबीर सब जग यें अम्पा फिरे ज्यूं रामे का रोज । . ........ सतगुर थे साघी मई तब्र पाया हरि का पोज ॥ २७ ॥ २७ इसके झागे ख प्रति में यह दोहा है-- कबीर सतगुर ना मिस्या सु्ी अधूरी सीप । मूड मुंहावे सुकति कुं चालि न सकें ग्रीष ॥ २8 ॥




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