प्राकृत - प्रबोध | Prakrit - Prabodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
313
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भगश ॥;
३ क्रिया की सद्दायता के बिना अनुवाद नही हो सकता है । यवः
चाक्य का प्राण क्रिया दी है। वाक्य की परिभाषा में केवल क्रिया को भी
बाक्य कहा है । प्राकृत के करियारूप संस्कृत की अपेक्षा बहुत सर हैं।
प्राकृत में प्रायः भ्वादिगण की धातु ही हैं और अकारान्त घातुओं को
छोड़कर शेष घातुओं मे आत्मनेपदी और परस्मैपदी का भेद भी नहीं
हैं । पाकृत में लकार नदीं होते । केवर बतेमान, भूत, भविष्य, विधि, आशा
एवं क्रिया-क्रियातिपत्ति ये छः काछ के भेद माने गये हैं ।
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वतमानकाल के प्रत्यय
एकक्चन बहुवचन
प्रथम पुरुप ( 7170 [65०४ ) इ, ए न्ति, न्ते, हरे
मध्यम पुरुष ( 36५00 67507 ) सि, से इत्था, हृ
उत्तम पुरुष ( 115६ 67809 ) मि मो, मु; म
हे./भू-दोना धातु के वर्तमानकाल के रूप
एकवचन बहुवचन
भ्र० पुर दीह होम्ि, होन्ते, होरे
म०पु० दसि होत्या, होह
उ०पु० होमि होमो, दोमु, कषेम
हस-हंसना धातु के रूप
एकवचन् बरहुक्चन
प्र० पुर हसइ हसन्ति, हसन्ते, हसिरे
म०पु० दहंससि दसित्था, हसं
उ० पु० हसामि, हसेमि दसिसमो, इसिमु, इसिम
1790312.16 1000 सिवातप वपाइयमासाएं अणुवायं करेन्तु
बदिरा हँसता है । राम हंसता है । बादुढ बरसते हैं। राम का नौकर
हँसता है । गोपाल के हाथ में पत्र है। आकाश में बादल हैं । लड़के
हँसते हैं। केशव का तात्यत्र हैं । मोदन का कुंआ गाँव में है। हरिहर के
कुछ का पानी मीठा है । चोर धन चुराता है। घोडे नाते हैं। पद्ाढ़
ऊँचा है। बाराणसी गड्ा के तट पर स्थित है। लड़के मैदान में
खेछते हैं ।
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