प्राचीन भारतवर्ष का सभ्यता का इतिहास | Prachin Bharatavarsh Ka Sabhyata Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) ३४०१1९० मे बहुत से संदिग्ध विषयो की व्याख्या फी शौर अपने दिन्दू साहित्य के इतिहास में प्रथम बेर संस्कृत साहित्य का स्पष्ट आर पूर्ण दूत्तान्त प्रकाद्ित किया । बेनफी साहब ने सामवेद के पफ वहु मुख्य सस्करण को प्रकाशित किया, जिसका अनुवाद खहित पक सस्करण॒ स्टिवेन्सन भं।र चिल्लन साद्व पिरे निकाल चुके थे | भौर म्योर साहटबने सस्रत साहिल म से अत्यन्त व्यजक मार प।लहासक् पाठका पक्त म्ह पच भागा मे परकाशत किया जो कि उनके परिश्रम और विद्या का अब तक चिन्ह दे । भौर अन्त में प्रोफ़ेसर मेक्समूलर साहब ने समस्त प्राचीम संस्कृत साहित्य को समय क क्रम म्बे सच १८५६ में ठीक किया । परन्तु इस बृहदू ग्रन्थ से कहीं बढ़ कर असूल्य--विद्वान प्रोफ़े- सर साहब के भापा, धघ्म आर दूवताओओं के सस्वन्घ की असंख्य पुस्तकों आर पग्वों से हिस्दुओं के लिये उनका ऋग्वेद संहिता का संस्करण है जिसे कि उन्हों ने सायन की टिप्पणी के साथ प्रकाशित किया इस पुस्त रू का भारतयप में कृतज्ञता मौर दष क साथ मादर किया गया । यह बरृदद्‌ ओर प्राचीन ग्रन्थ जा गिनती करे कुः विद्वानों फो छोड़ कर और लोगों के लिये सात तालों के भीनर चन्द्‌ था उका माम्‌ अव हिन्द विद्यार्थियों के लिये खुन्ठ गया आर उसने उन न्ागों के हृदय में भूत काल का इतिद्दास जानने की. अपन प्राचीन इनिदास और प्राचीन धघम्स को जानने की मामिलापी उत्पस कर दी । भारतवर्ष म जोन्न. कालवृक ओर विर्सन साहवय के उत्तराधिकारी योग्य हुए परन्तु उनमें ~+ मर जेम्स प्रिन्सेप साटव सब से बढ़ कर इष । भारतयप में स्तूपों और चट्टानों पर अशोक के जो लेख खुदे हुए दें वे लगभग १००० चष तकलोगा का सममे नूप मौर सर विल्लियम जोन्स साहब तथा उनके उत्तराधिकारी लोग भी उनका पता नहीं छगा सके । जस्स भरन्लप सादवने जोकि उस समय पाशियादिक सोम्मयायरी कमत्रा थ, इन पव्याच्सा क दष्टः मार इस्सर प्रकार से बांद्ध पुरातरव झौर प्राचीन बोद्ध इतिहास प्रगट किया गया । यह




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