सम्मेलन - पत्रिका | Sammelan Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहतर भारत को सांस्कृतिक रूप-रेखा १५
प्रकार वंशपथ' को पार कर वे अन्धकारपूर्णं एक घाटी में पहुँचे । प्रकाश के लिए उन्होंने किसी
प्रकार मीगी लकड़ियाँ जलाई जिसे देखं कर कुछ किरात वहाँ जाये । यात्रियों ने उनसे बकरियां
ली और उनकी सहायता से उस अजापथ' को पार किया) आगे चल कर एकं दूसरे दर से
उनका युद्ध भी हुआ । किसी प्रकार वे आगे बढ़ते गये। फिर अचेर की सलाह से सब ने अपनी
बकरियों को मार कर उनकी खालें इस प्रकार ओढ ली कि वे माँस के टुकड़े मालूम होने लगे ।
भयंकर पक्षी उन्हे लेकर उड गये । रों काक्या हुआ हमें नही मालूम, परन्तु पियो के आपस
के युद्ध के कारण सानुदास छूट कर एक घने जंगल कौ भील में गिर पडा। वहसे निकल कर
वह एक विचित्र देश में पहुँचा जहाँ की नदियों के किनारे बालू के स्थान पर स्व्ण-कण विखरे
थे। यही श्वर्णभूमि थी ।
इस प्रकार इन कहानियों में अनेक भयंकर मार्गों का वर्णन आता है जिनके आधार पर
यात्रियों की भयंकर यात्राओ का कुछ अनुमान लगाया जा सकता हैं । फाहियान' ने भी इसी प्रकार
की भयंकर यात्रा का वर्णन किया हैँ । वह जवक्षैभारत से चीन वापस जा रहा था तो दो सौ
यात्रियों से दी उसकी नाव तूफान में फँस गई । किसी प्रकार मृत्यु के मुँह से निकल कर वह
लगभग ९० दिनों में यवद्वीप (जावा ) पहुंचा था ।
इस प्रकार की कहानियों तथा अन्य अनेक उदाहरणो से प्राचीन भारतीयों के अदस्य
ध्यापारिक साहस का परिचय भिलता है । इन कथाओ से पता चलता ह कि साहसी एवे शक्ति-
छालीक्षत्रियोने ही इन दूर दीपो मे हिन्दू-उपनिवेशो कौ नीव डाली थी । इन प्रदेशों के दूसरी
शताब्दौ के साहित्य मे हेमं अनेक एस राज्य ओर राजाओ के नाम' मिलते हे जो विशुद्ध भारतीय
६ । उनका धर्म, सामाजिक रीति-रिवाज, भाषा ओर छिपि सभी भारतीय हे । दूसरी एवं पांचवी
शताब्दी के मध्य मं एसे भारतीय ओौपनिवेरिक राज्यो को स्थापना कम्बूज, एनम, जावा,
सूमात्रा, बाली, बोनियो आदि द्वीपो में हो चुकी थी । इन राज्यों का इतिहास हमे चीनी साहित्य
एवं संस्कृत के शिला-लखों द्वारा मिलता हूं । उन दिनों ब्राह्मण-धर्म विशेषकर शैव-शाखा की
विदवष उन्नति हो रही थी यद्यपि बौद्ध-धर्म भी प्रगति पर था । भारतीय संस्क्रति का पुर्ण प्रभाव
वहाँ की मूल जातियों पर पढ़ा और लगभग एक हजार वर्ष तक हिन्दू-सस्कृति का ही वहाँ
बोलबाला रहा । यहाँ तक कि शताब्दियो वाद जब भारत मं हिन्दरु-राज्य का पतन हो गया,
इन दीपो मे हिन्टू-सास्नाज्य वना रहा 1 तत्काीन राज्यो म चम्पा ओर कम्बूज अधिक शक्ति
शाली थे । इनकी शक्ति का अनुमान इसी से किया जा सकता हैं कि विख्यात मुगल सरदार
कुबलाई खाँ भी उनके द्वारा पराजित हुआ था। इस प्रकार तेरह शताब्दियों तक (१५०-
१४७१ ई०} हिन्दू शक्ति का हौ बोलबाला रहा । इन उपनिवेशो की भूमि भव्य मन्दरो तथा
अन्य कलापूर्ण स्तूपों एवं मूर्तियों आदि से भरी पडी थी ।
हमारे इन उपनिवेशों की राजनैतिक शक्ति का आरम्भ निश्चित रूप से कब से हुआ
यह अब भी अज्ञात है तथापि कथाओं के आधार पर कुछ अनुमान लगाया जा सकता है । कम्बूज
के विषय में एक कथा इस प्रकार आती है। 'कोण्डिन्य' ने नाग राजकुमारी सोमा से विवाह
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