कबीर साखी - संग्रह | Kabir Sakhi - Sangrah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.57 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. महावीर प्रसाद मालवीय - Pt. Mahaveer Prasad Malviya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुरुदेव का संग
ऐसा
ऐसे ते. सतयुरू
सब ही जग सीवल कया
सतगरू हम से «-रीसि
बरसा बादल प्रेस का
के उपदेस का
जा सतणरु नहीं
जम ट्वारे पर ठूत सब,
' विन वे कबहूं न छटदता
चार खान से करसता
-सेो ता फेरा सिंदि गया
1 सीचा व्यापं सहीं
चल कबीर वा देस से
काल के साथे चाँव दे
साहेन अंक पंसारिया
सतगुरु साँचा. सूरमा,
लागत ही मय सिटि गया,
सतगुरू
बाहर घाव न. दीसईं,
सतगरु सब्द कमान कि
एक जा दबाहा प्रेस से
व. । सौंत ।
१ चलाया ।
छाई ना मिला,
से पं 3... # वी ३८
तन मन सेँपे सिरण ज्यीँ,
सिले,
'कीतर
सतत लास का सीत ॥
सुने बिक का गीत
जिन से रहिये लछाग ।
जब सिटी आापनी
एक कहा. परसंग ।
फींजि गया सब ऊंग ॥द६९॥
सुनिया एक बिचार ॥
जाता जम के ट्वार ॥०७०॥१
करते खींचा ताल ।
फिरता चारा खानि ॥०९॥
न लहता पार ।
सतणरुू के उपकार ॥७९॥
सवा न स॒निये काय
जहूँ बैदा सतगरू हाय ॥०३॥
सतगरु. के उपदेस ।
ले चला अपने देख
सब्द जा एक
पड़ा
नख सिख सारा पुर
चकनाचूर
बाइन लागा तोर
सीतर लिधघा सरीर
अँकबार यानी दाने
980
पट
991]
सट्टा
दानेों हाथ 1
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