वित्तसारो | Vittasaro
श्रेणी : सभ्यता एवं संस्कृति / Cultural
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्राकृत- पाली- अपभ्रंश- संस्कृत के प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफ़ेसर राजाराम जैन अमूल्य और दुर्लभ पांडुलिपियों में निहित गौरवशाली प्राचीन भारतीय साहित्य को पुनर्जीवित और परिभाषित करने में सहायक रहे हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय साहित्य के पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करने, शोध करने, संपादित करने, अनुवाद करने और प्रकाशित करने के लिए लगातार पांच दशकों से अधिक समय बिताया। उन्होंने कई शोध पत्रिकाओं के संपादन / अनुवाद का उल्लेख करने के लिए 35 पुस्तकें और अपभ्रंश, प्राकृत, शौरसेनी और जैनशास्त्र पर 250 से अधिक शोध लेख प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त किया है। साहित्य, आयुर्वेद, चिकित्सा, इतिहास, धर्मशास्त्र, अर
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वित्तसारो
२. रहधु ने स्वयं इन्हे गीता-श्लोक कहा है, किंतु आधुनिक प्रकाशित गीता मेँ ये श्लोक अप्राप्त हैं ।
प्राकृत के बीस उद्धरण इस प्रकार है-
रयणत्तयं हि अप्पाणं चेव होड रयणत्तं ।
ताहं अण्णण्णं दिटं दाहाइगुणा सिहिस्सेव ॥( वित्त० १/८१रइधूकृत सिद्धातार्थसार)
दंसणवय सामाइय पोसह सचित्त-राइधत्तीयं।
बंभारंभपरिग््ह अणुमण्णे उदिदु देस-विरदो य ॥
(वित्त० २/६० तथा 20 चरित्रपाहुड गाथा २१, कार्तिकियानुप्रक्षा गाथा-६९,
जीव0 गाथा- -४७७, वसुनंदि0 गाथा-४, अंगपण्णति गाथा-४६, तथा पंचसंग्रहं - १/१३६)
आलोगणं दिस्राणं गीवा उण्णाम णं च पढमं च।
णित्थूुवणंगपरिसो काओ सग्गसम्मि वजिजो ॥( वित्त० २८३२७ तथा मूलाचार ६७० )
पटढमं वीयं तयं सास वयं होड इय जिणो भणड।
विगयासवं चउत्थं माणं कहियं समासेण ।¢ वित्त० ३८२१ तथा देवसेनकृत भावसंग्रह ६८६ )
जाणइ धणु जाएसड भामिणी सुय जाहिर ति पुणु।
जाणइ मरणु वि होही जा णड तह चि धम्मे मड कुरुदे ॥( वित्त० ५/९ तथा रदृधूकृत सिद्वातार्थसार १०/२०)
एवं मण्णड सव्वं परिच्छाइदि ति णिच्चवडुणड़यं।
किं तहु गुणठाणेण वि तिदिओ संभवड भणहु तं सूरि ॥ ( वित्त० ५५१ एवं अज्ञात 2? )
ण्हाण-विलेवण-मंडण-मजण-कीला-विणोय-जुय-जुवई ।
ण लोयड तहि सम्पहु वंगणि पत्तो णियत्तेह \॥ वित्त० २८२२९ एवं अज्ञात ?? )
रूवेण य रमणीया दंसण सुहयारि यावि सुकुमारा।
जत्थ गुरुताहावो पमाण वद्धेति सिण्ाय ॥
णयणपसारे जीवा सुहुमाणडउ पेच्छियंति ते मुणिणा।
जीवदयाइ कएवं धरंति पडिलेहणी हत्थे ।॥ वित्त० २८२३३ एवं अज्ञात 2? )
मिच्छत्त-पमाय-जोयहि कसाय-धावेहिं कम्मणो बंधं ।
होड तिभेय णिरुत्तं दव्वं णोकम्म भावं च।६ वित्त० ४८५ एवं अज्ञात 2? )
जिणपूया सामग्गी जल-चंदणाइ पवरदव्वाणं ।
श
User Reviews
Ratna
at 2020-01-14 07:34:07"(12th century AD, Apabhramsha) A great masterpiece of ancient India, deeply touched the literature, art and culture!!"