मन्दिर वेदीप्रतिष्ठा कलशारोहणविधि | Mandir Vedipratishtha Kalasharohanvidhi

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Mandir Vedipratishtha Kalasharohanvidhi by पन्नालाल साहित्याचार्य - Pannalal Sahityacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८२) आविद्य तथा श्रष्टमद्रल द्रव्य रखकर शोभा चदरावि। परतिमा उपर घनमय लगाय जायें 'ीर मण्डलकों 'चमरोंसे सुशोमित किया उतर । सण्टनर तस्तरे श्चागे पृनाकं निणण्क भस्त 'यलग लगाना चादियें। लीं पूराभिमुख 'मयरा उत्तरमिमुख होर पूनम पूनाकफे लिए सढ़े दो। इस म्रकार मंदलवी तैयारी कर मरै मीर एफा त स्वच्छ 'और इराटार स्याने जप प्रारम्म कना चाद्य । कार्येकी निमिष्न समाधिफके जिये गाल, श्यदत्तर इतार, उफ्यायन इतारुझथ या इस्वीस दनार ता श्यरय मरना चाहियें। जप फरनयालि ठरयक्ति मिर्यार्य, ध्र याय श्रीर्‌ श्रमच्यते त्यागी हों, अतुप्रानके निनाें '्गश्य दी शर्मययंत्रा पालन फरते दा; रात्रि मे चारों प्रराररे 'ादारके त्यागी दा श्रीर शुद्ध भोगन करते दो। मतरकाउन्ारण शुद्ध क्र स्तदा श्रीर्‌ श्रनि कायम सचि, श्रद्धा श्रीर्‌ इत्साद्‌ श्यतं हो । श्राट व्यति इम कायो निराकुलता से पूरा कर स्ते है इमनिय}र्‌ह पतसे निश्चित कर प्रतिप्टाचायै सच तिपि सममा दुद। जप करनेगले मद्दाशय शुद्ध 'और नये धोता दुपट्टे पढें । प्र यस्त धारण फर जपे न वै ! विस स्थान पर जप करना हो यदाँ यीचमें एक वड़ा थानीटा रख कर 'उसपर पुष्पपि णक न यायत स्यन्ति वनय । किर पाच कलशा को नारियल, सूल, माला श्रादिमे सार वैयार खख 1 य कलेश मल ही मिड्रीके क्यों न हा पर कामम लाये दुए स हों । एक कलशम दसी, सुपारी तथा '्वक्षताके साथ १) सा रुपया ढाल दू । दोप कलरशॉर्म इसी, सुपारी श्रीर श्वक्षत टाल दे । प्रयान कलश, चिसम सपया डाला गया द वाती वीचम रम्खा जाय और शेप चार कलश उसके चरते तिशाबाम रखे जानें । उसी यातीरा (चीरी) पर पूयं या उत्तर वी श्रोरे एक सिददासन पर रिनियर यम दिगवसान रिया जाये। यदि यय्रकों पुरे रिरालमान किया है तो उत्तम श्रीर उत्तरम




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