शक्तिपुंज निराला | Shaktipunja Nirala

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Shaktipunja Nirala by कृष्णदेव झारी - Krishndev Jhari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र४ मे 'मतवाता में चले श्राएं । 'मतवाला' में हो सर्वप्रथम उनी आरम्भिके रचनाएँ प्रशाशित हुई और हिव्दी ससार को उनकी प्रतिभा का परिचय मिता । उन 'निराता' नाम 'मतदाता' के अनुभास श्रीर उनकी निराली स्वच्छन्द ्रगत्तिके ही कारण पडा। इस बीच दे ध्रगो श्रत्मायमे से भी अपने घर वालो को वरावर पसा भेजते थे । सन १६२८ में निराला श्रपते गाँव सढाकोला झा गए । उन दिनों गाँव में किसानो पर जमीरारों के अत्याचार हो रहे थ । बंगार, वेदखली शरीर छीना भपटी का दौर चल रहा था । निराला का भी वागीचा श्र कुछ जमीन लिंन गई थो । निर ला मे गाँव में क्पान ब्रान्दोलन छेड दिया । किसानो से जागरण के प्रभाव तथा संभवन की कमी के कारण यद्यपि वे इस संघर्ष मे सफलता प्राप्त नदी वर सके, पर इससे उनकी विद्रोह प्रजरति को वल मिला) अपने गाँव में थाने पर उनका जीवन श्ौर भी अधिक व ठिनाइयों मे पड़ गया । गाँव से जो उ विताएँ प्र पत्रिराप्रीं को भेजते थे, उनसे कया मिल सकता थी *. उन्होंने उन्यात कहानियाँ बेचकर निर्वाह करते वी ढानी । पर जो मिलता था, उमसे परिवार का खर्च चलाना कठिन था । सन ३० मे निराला लखनऊ चने गए । उहाँ सुरा पत्रिका का सगरादन कायं '्रपने हाथ मे निया । इसी वप उनवा प्रथम काब्यसंग्रह परिमत प्रकाशित हुआ । यद्यपि इसमें कृष्ट वप पूव श्रनमिका' नामक पुस्तिका से उनकों कुछ झारम्मिक कविताएँ प्रकाशित हो चुकी थी पर लेखन का देखने हुए भ्र्वात्‌ १६१५-१६९ से कविता स्वनाम प्रत्रन कवि की डतियाँ सन १६३० में छपें-- १४-१५ वर्ष बाद, तो यह स्ति हिंदी प्रकाशन की दृष्टि से हास्यास्पद नही तो क्याहै? पत्रपश्रिकामोमे छपवाना भी मजाक नहीं था 1 नये स्वर झौर नई मुवत कथि-प्ररतति के प्रति परम्परागत साहित्यिकों मे. भरुचि श्रौर उपेश्ञा का भाव या। निराला कतत मधर्पोसे गुजरे थे, भ्राज वदाचित हम बस्पना ही कर सकते हैं । यद्यपि छायावाद के सभी कवियों को प्रारम्ममे वि रोव का सामना करना पडा था, पर निराला को सर्वाधिक विरोष सहना पड़ा उन मुदल द नदर दाशनिक वोद्धिक प्रवृत्ति ्रोरनये काव्य प्रयसिक। उन दिनों बहुत विरोप हुग्रा था । सन्‌ १९३१-३रे में निराला पुन कलकत्ता गये थे । वहाँ ^रगीला' पत्र निका सने क ध्रायोजन हुमा था! पर न तो उन्हू वहा साहित्यिक प्रात्साहन का वात वरण मिला भौर न हो भ्ाधिक दप्टि से कुछ लाम हुमा । भरत शीघ्र वापा गए । वापस श्पन गाँव झाकर उन्होने धार झाधिक सक्ट की स्थिति में अपनी प्रिय पुष्ी सरोज का विवह किया--वित्ुल परम्परा के विपरीत, श्रषने ही दग उर सर्वेधा झाइम्बरहीन ! श्रिसो उ निम्र नदी दिया, पुरोहित भी स्वय वन गये थे । पर हाय विवाह के चार पाँच साल वाद ही पुत्रौ का निवन हो गया निराला गी यर क हारे 1 उन्होन 'सराज-स्मृति' नामक्‌ मासिक श्चोकीत मे ग्रपनी सच्ची व्या व्यक्त ह सन १६३२ के बाद निराता फिर लखनऊ रहने लगे थे ।नभाधिव स्थिति वो




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