भगवतीचरण वर्मा और उनका भूले - बिसरे चित्र | Bhagavaticharan Varma Aur Unaka Bhule - Bisare Chitra

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Bhagavaticharan Varma Aur Unaka Bhule - Bisare Chitra by कृष्णदेव झारी - Krishndev Jhari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपन्यास : स4रूप, तत्व और शली-शिल्५ ७ रस-भाव-चिंतण : रस-भाव साहित्य का प्राण-रूप अनिवार्य तत्त्व है। इसके बिना कोई रचने। साहित्य की परिधि में श्रा ही नहीं सकती । बहुत-से आलोचक साहित्य-समीक्षा--विशेषक ९ आधुनिक साहिए्व की समीक्षा में रस- भाव की श्रवहेलेथा करने लगे हैं। उनका विचार है कि रस के बंधे-बंधाये चौखटे से नव-साहित्य की परख नहीं हो सक्ती । इस सन्बन्ध में हभा1र। निवेदत है कि रस-भाव की अबहेलन। से काम न चलेंग। । रस-तत्त्व में जीवन जी ६५५५ उदात्तता को ५ हित करने की शक्ति है । आज के हमारे अनेक #।लाचक समीक्षा के कुछ बाह्य भाषदण्डों को सत्य मानक साहित्य के मूल तत्त्व रस-भाव की अवहेलना करते प्रतीत होते हैं। इप्त सम्बन्ध में हैमारा आभ्रह है कि साहित्थ-समीक्षकों को युग-साहिए्व के नियभी की विवेचना करते हुए साहित्य के मूलभूत शाइवत मानदण्ड-रस या उदात्त भाव-रस--को नहीं भुखन चाहिये । चाहे हम मह्‌।नन के लक्षणों की निपेचम्‌। कर रहे हों या उपन्याक्ष के तए्षों की, हमें सदा उन त॑प्वों को भ्रभुखत। देनी चाहिये जो साहित्य के मूल तत्त्व हैं। खेद है कि उपन्यास, कहे।नी श्रादि आधुनिक साहिए्व-विधाओ्रों के तत्त्व-निरूप० में हम ५३चात्य समीक्षकों के ५५९५ पर मूल तत्त्व रस-भाव को भुला रहे हैं। उपच्यास- केह।नी आ्रादि के तत्त्व निरूषित करते हुए बहुत-से अधोचक भ।१चुभुति--रस- भाव तत्त्त--को गिनाते ही' नहीं। प्रेमचन्द आदि के उपन्यासों की समीक्षा करने वाले समीक्षकों ने भाव-संवेदनाओों की दृष्टि से भृुल्थांकन छोड़ ही दिया है। क्या प्रेमचन्द प्रादि हमारे उपच्यासकारों की भद्ठावता केवल इस बात में है कि उन्होंने समाज की विविध समस्याओं का बोध कराथा जो कार्य कि एक सभाण-शास्त्री भी कर क_्षकता था ? मैं समभता हूँ कि प्रेमचन्द, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा श्रादि इसलिए महान्‌ हँ कि उन्होंने जीवन के भिन्‍न-भिन्‍न पह्गुभो पर हमारी भाव-तय८१।५ जगाई, जो युग के महान्‌ सांस्कृतिक निर्भाण से सम्बन्ध रखती हैं। श्रनुभूति-क्षेत्र के रागत्मिके तत्वों के माध्यम से ही इन শী ক प्रगतिशील तत्त्वों का अध्ययते करना समभीचीन है। इसके बिना उनकी समीक्षा अधूरी ही कही जा क्षकती है। हमारे श्रेष्ठ उपन्यासों की भी सबसे बड़ी शक्ति उनमें व्यक्त उदात्त भाव-रस ही है। जिस रचता में उदात्त भावों का जितना अ्रधिक व्यापक श्रौर गहन चित्रण होगा, उतनी ही वह श्रेष्ठ मानी जायगी । उदात्त भानवीय संवेदनाओं का ही




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