जातक भाग - 2 | Jatak Bhag - 2

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Jatak Bhag - 2 by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Aanand Kausalyaayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १६ 1 विषय पृष्ठ १७६. सतधम्म जातक . - २३७ [ब्राह्मण ने पहले श्रपने ऊवे कुल के श्रभिमान के कारण चाण्डाल का दिया भात खाने से इनकार किया । . पीछे जोर की भूख लगने पर चाण्डाल से छीन कर उसका जूठा भात खाया । | १८०. दुद्दद जातक (६ .. २४० [ कठिनाई से दिया जा सकने वाला दान देने की महिमा । | ४. असदिस वग २४४ १८१. श्रसदिस जातक क प न». रेड [ श्रसदिस राजकमार की विलक्षण धनुविद्या । ] १८२० सड्ामावचर जातक ४ ,, २४६ [ हाथी-रिक्षक ने मंगल-हाथी को बढावा द संग्राम जीता । | . १५३. वाठोदकं जातक . . -„ २४४ [ सिन्धूकल में पेदा हुए षोड प्रंगूर का रसं पीकर शान्त रहे । बचे कसेले रसं में पानी मिलाकर गधों को पिलाया गया । वह्‌ उद्खलने-कूदने लगे । ] १८४. भिरिदत्त जातक पि २५७ [ शिक्षक के लंगड़े होने से घोड़ा लंगङ्ाकर चलने लग गया । | १८४. झनसिरति जातक , . , ई [ चित्त की श्रस्थिरतामन्वो की विस्मृति का कारण हुई । ] १८६. वधिवाहून जातक . , २६२ [ दधिवाहन राजा ने मणि-खण्ड, चुरी-कृल्हाडी ५० ढोल तथा दही के घडे की मदद से वाराणसी के राज्य पर अधिकार किया । ]




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