हिंदी गद्य - माला | Hindi - Gadya Mala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
171
श्रेणी :
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No Information available about पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९९
' मैं पंचक्रोशीका बणन ऐसा नहीं करना चाहता कि जिसे देखकर
लोग पंचक्रोशीकी यात्रा करने चले जायें बरंच मैं भगवान कालके उस
परम प्रबल फेरफाररूपी दाक्तिको दिखाता हूँ जिससे वै्य्यमार्नोका धैय
और अज्ञानोंका मोह बढ़ता है । आहा ! उसकी क्या महिमा है और
केसी अचिन्य दाक्ति है! अतएव मैं मुक्तकण्ठसे कह सकता हूँ कि
श्वर मी कारका एक नामान्तर है, क्योंकि इस संसारकी उत्ति प्रट्य
कवल इसीपर अय्की है। जिस विजयी ओर विख्यात सिकन्दरने
ससारको जीता उसकी अस्थि कहौ गड़ी है ओर जिस कालिदासकी
कविता संसार पठता है वह किस कालमें और किस स्थानपर हुआ?
यह किसका प्रभाव है कि अब उसका खोज भी नहीं मिलता अतएव
यदि हम प्राचीनोंसे प्राचीन, नवीनोंसे नवीन, बलवानों से बलवान, उतपत्ति,
पाछन, नाशकर्ता और सर्वतन्त्र-स्वतन्त्रादि विशेषणोंसे विशिष्ट ईश्वरकों
काटटीका एक नामान्तर कहैं, तो क्या दोष है। ”'
--भारतेन्दु दरिश्चन्द्र
मास्तन्दु हरिश्चन््रन तो हिन्दी गद्यको स्थायी रूप दे दिया । आधुनिक टेखकः
टगभग उन्हीके प्रदरित मार्मेपर चल रे है ।
भारतेन्दु बाबू हरिश्वनद्रजी हिन्दी साहित्यमं नवयुगके प्रवतैक ह । उनक्र
समयस टेकर आजतक हिन्दी साहित्यका विस्तार बढ़ता ही गया है। गत
पचचीस वपरमिं हिन्दी सादिप्यकी विदोषर उन्नति हुई है । साटि:थके भिन्न भिन्न
्षेतनोसं कितने दी एेसे टेखक हौ गये जिनकी स्चनायं हिन्दीकी स्थायी सम्पत्ति
मानी जा सकती हैं;--जातीयता, विचारस्वात॑च्य, देदा-भक्ति, प्राचीन
आदरसि असन्तोष्, ज्ञानके लिए, तीन्र आकांक्षा, विश्व-वन्धुत्व आदि भाव-
साहित्यमें स्थान पा रहे हैं ।
प्रत्येक देशाका इतिहास कई युगोंमें बौदा जा सकता है । प्रत्येक युगमें
एक विशेष सम्यता, कुछ बिरोप्र विचारो ओर भावनाओं तथा उन्दीकेः
अनुकूल संस्थार्ओका प्राधान्य रहता है । उसके द्वारा देडा दिन दूनी ओर
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