छाया में | Chhaya Men

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Chhaya Men by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० छाया में किसी ने उन फैले पत्तों में से एक पत्ता निकाल कर देखा | उतने सारे पत्तो के बीच से जसे कि वह श्रपने भाग्य का निखंय करना चाहता हो | वह हुक्म का एका यथा | “ठीक !” कालेज के विद्यार्थी ने समाधान करते हूए कहा, “ताश का पत्ता भी श्राने वाली विपत्ति की सूचना दे रहा दे । नहीं तो यह मनहूस पत्ता ही क्यां निकलता ।* सथ के चहरे फक हो गये । जेसे किं यह पत्ता, किसी भयानक व्यवस्था की श्रार श्रागाह कर गया था । मेरे दिल पर भी एक गददरी निराशा छा गयी | एक भारीपन श्रोर पीड़ा थी । जेसे कि कोई घाव दुःख रहा दो । कभी-कभी मन अनायास उचाटठ हो उठता था । श्मार यह ब्रात °“ क क | रेल का सफर भी श्रजीब ही होता है। एक डिब्बे में कई अनजान श्राद्मियों के बीच बेठे रहना । उनकी बातों श्रोर धारणाश्रों में श्रपने को चालू कर, निजी राय देना । फिर प्रम का चलचित्र श्रार दुःखान्त के श्रध्यायों के निर्माण के लिये कभी-कभी वह उपयुक्त जगह सानित होती है; किन्तु श्राज के सफर मं नहीं साचा था कि यह्‌ भी सुनना पड़ेगा । माना कि इम श्रलग-श्रलग व्यक्ति है, जिनके ख्यालात श्रोर दलीलों में कद्दीं समानता नहीं । श्र दुमात्र से शुरू होने बाली इस दुनिया मं जब शून्य से इतनी श्राबादी बढ़ गयी, तब किसी बात पर अविश्वास नहीं होता है। जो हो जाय उसे नयाः केसे मानल! “तेरह ।” मेरे बगल वाला गुनरुनाया । “कया है ।” मुकके बात पूछनी जरूरी लगी । १ + ७ ~+ ५ = १३ तेरइ ! मेरे टिकट के नम्बरों का जोड़ है | अब विश्वास हो गया कि इन सब बातों के मिल जाने पर जरूर कोई श्रनहोनी बात होकर रहेगी, निसके लिये हर एक को तैयार रहना पड़ेगा । जेसे यह विपत्ति अब नहीं टलेगी । किसी को छुटकारा नहीं मिल्षेगा, इर एक पर यह बात लांगू हेती मिली। वह गिनती श्रोर संख्या दमारे जीवन-दिसाब से




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