निर्देशक | Nirdeshak

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Nirdeshak by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निर्देशक १६ भी उसकी आस्था है। सरला के साथ जो बूढ़ा नोकर आया था। ভ वहाँ के जीवन से कोई स्नेह नहों हुआ्रा । नवीन उस बूढ़े के उत्साह म॒ अपने को पाता है। लेकिन रुरला श्रागयों है, जिसके मनोभावों को वह एक मलक में ही पहचान गया । जिस गति पर वह सोच रहा था, उसके प्रवाह को बूढ़ा नौकर ब्यर्थ ह्वी रोक लेने की भावना लिए हुआ था । सरला और तारा, दानों सहेलियाँ आज वर्षों में मिल रही हैँ । लड़कियों के इस स्नेह के प्रति सदा वह सोचा करता है | उनक्रा जीवन मोह और ममता की घनी डोरियों से पग-पग पर उल्लका रहता है । नवीन तो आज तक न सोच सका था कि वह किसी को अपना सगा दोस्त बना सकता है । कोई ऐसा व्यक्ति अब भी याद नहीं आया। सरला उस परिवार में अपने को परिचित बनाने में ऐसी निषुण होगी, इसका अनुमान नवीन को 'नहीं था | दिन को कोई खास घटना नहीं हुईं । संध्या को नवीन बढ़ी दूर 'घूमने निकल गया | धोरे-घोरे रात पड़ गई । वह खेतों-खेतों में टहलता रहा | श्रास पास बैलों की घंटिया बज उठती थीं। वह पत्थर के बने छोटे चबतरे पर बैठ गया । वह चबूतरा सर्वेवालों ने बनाया था। उस पर खुदा हुआ था आर० के० आर० १६२५ | वहाँ रेलवे लाइन बनाने के लिए पैमाइश हुई थी । निकट भविष्य में सम्मबतः कभी वह रेलवे लाइन चने | श्रमो तो उसकी तसवीर पर धूल सी पढ़ गईं थी। गाँव का सामाजिक-इतिहास उद। उसके लिए कई कुतूहल-पूर्णा घटनाओं का खजाना रहा है | पुराने घरानों का उजड़ जाना, नए परिवार का जन्म लोगों की श्रापत्ती लागडांट-नारियों का आपसी स्नेह सूप। श्रव चारों श्रोर धना अन्धकार छा गया । जुगनू बीच-नीच में चमक रहे धे । नीचे दुर सी नदी कौ धाटी निपट काली पड़ गई थी । उस घुनसान में उसे श्रानन्द्‌ श्राया । बह उस समयचब से श्रलग श्रा +केला था | श्राज




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