सड़क पर | Sadak Par

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Sadak Par by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० सड़क परु रहता है, जो लोगों की दृष्टि में सबंथा कुरूपता की तरह खटकेगा | कभी व्दाँ कोई काली-कलूटी अधेड़ युवती नहाती है| वह अधेड़ है, उसकी ढली जवानी वहाँ व्यक्त हो जाती है। अद्ध नग्न सी वह असावधानी से नहायेगी | नारित्व के जबदस्त हथियार लज्जा की खास परवा उसे नहीं हे | वह बम्बा एक सीमित परिवारवालों को आभ्रय देने कां साधन है ओर वहाँ के देनिक जीवन में महत्वपूशं, स्थान रखता है | छुटे-छोटे बच्चे उसके पानी से खेलते है या फिर सन्ध्या के मिश्ती अपन। मश्क भर कर पास वाली सड़कों के सींचने का व्यापार चालू करता है। कुछ दूर हट कर ग्वालों की जो बस्ती है, वहाँ से यदा-कदा वे लोग अपने শা হা यहाँ नहलाने ले आते हैं। उन भेश्तों के काले बदन से टपक्ती पानी की बँद कभी आस-पास बैठे खोद्चवाले तक पहुँच जाती हैं। वे नाक-भौं सिकोड़, उसके मालिक की ओर तिरछी पैनी नजर से घूरते हैं ; कहेंगे कुछ भी नहीं। कारण की गवाले के कान पर सोने की मुरकियाँ हैं। वहाँ के छोटे समाज के बःचवेगोसीलाग दही साधारण सूद पर सेठोंवाली हैसियत से रुपया फलाया करते हैं। तो वह बम्बा उस गली में एक महत्त्वपूर्ण जगह स्थापित किए. हुए. हैं। वहीं पर बड़ी सुबह आस-पास रहनेवाले साधारण गहस्थों की नारियाँ पानी भरते, गप-सप लगाती अपनी नारी जाति का पूण परिचय देती हुई मिलंगी। या वहाँ के जीवन म प्रति दिवस होने वाली किसी मेद-मरी बात का रहस्य खुलेगा । वह सब बाते पुरुष-समुदाय के बीच पहुँचकर यदा-कदा भारी हल्ला फला देती हैं। गली के बाहर नगर का अपना जीवन है। वहाँ रहता है मुरली | उसने दूर तक नागरिक जीवन की चमक देखी है। बड़ी-बड़ी 'ऐग्ड कम्पनी! की दूकानों की सजावट का अनुमव उसे है। इसलिए गली के भीतर आते द्वी वह अ्प्रतिभ हो उठता है। चौकन्ना होकर चलता है, संभल-संभल कर कि जैसे सब लोग उसे घूर रहे हों और वहाँ वह




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