मेरी फजीहत | Meri Phajihat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आख़िर जब मुझसे न रहा गया, तब मैं भी जोर जोर से
शुनुमान चालीसा का स्तोत्र कश्न लगा ।
ज्ञीता रहे हनुमान 'चालीसा बनाने बाले का बेटा ! जनाब
स्तोत्र के आरम्स काल में ही सुधारानी ऐसी धीमी पढ़ गईं;
कि कुछ पूछिये नहीं । मध्य काल में तो वे स्वयं चस स्तोघ्र के
सुनते सुनते ऊब गई' । उन्होंने कहा, अरे चुप भी रहीगे या
थों ही'ज्ञान खा ढालोंगे। दिन भर पर घर आये भी तो, दुख-
सुख पूछने के कौन कहे, एक दूसरा ही पचड़ा छेड़ किया !!
कहने की 'झाबश्यकता नहीं, कि विजय का सब मात-
'असबाव मेरे हाथ लग रददा था | इसलिये मैंने 'चुप हो जाना
डी 'अपने लिये 'पधिक श्रेयस्कर समझा । क्योंकि कौन जाने,
कछुछली के महल में निश्नास करने वाले चंचल परह् कब पिर नाराज्
हो जाँय, पर सुधारानी ज्वालामुखी पहाड़ बनकर फ़िर आग,
कावा, राख उगतने नगे ! फिर तो लेने के बेने दही पढ़
ज्ञायेंगे । बरफ़रार रहे मेरे हृदय की चतलुराइं ! उसने मुझे शास्त
कर दिया, किन्तु मैं झपने मन हो मन सोचने लेगा, यद विचित्र
श्यायालय है । जंषरा मरै, रोवे नदे, कदाचित् यह लोकाकि
भेसे ही न्यायालयों के अधिपत्तियों के लिये श्रेनाई गई है। ,
मैं चुप होकर सुभारानी को 'योर देखने लगा । उस समय
मेरे श्रीं पर हैँसी थी । अंगनंग से जैसे मसम्नता का सावन
भर रहा था ! सुधारानी से यह थात छिपी .न रदी । उन्न मेंरी
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