साहित्य - प्रवाह | Sahity - Pravah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कृष्णदेव प्रसाद गौड़ - Krishndev Prasad Gaud
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य-मधाह
पोषे 2 ८
४४ (सन ई० १८६६-८७ ) के लगभग ॒कविताकी भाषाका -िवा चलं
पड़ा । दोनो ओरसे पमि युद्ध छिड गया । उस समय पं० श्रीधर पने
जगत सचाई सारः नाम्नी कविता काशी पत्निकामं छपवाई थी ]
कहो न प्यारे मुझसे ऐसा, झूठा है यह सब संसार;
थथा भगडा जीका रगडा केवल दुखका हेतु अपार ।
उसके पश्चात आपने ऋठु संहारका कुछ श्रंश श्रनूदित किया था | ग्रीष्म-
अणंनका एक छुन्द आप लोगोंकी सेवाम रखता हूँ ।
खिलित नव छुसुम्बी रंग सिंदूरका सा ; -
अति पवन चलेसे वेग जिसका बड़ा है।
निज तट विट्पोंको, चोर्टियोंसे लिपटके
विकट प्रबल ज्वाला दाद करती फिरे है |
इसके पश्चात पं० श्रीघर पाठकनीनें खड़ी बोलीमें कविता शझ्ारंग फर दी |
यद्यपि उन्होंने कश्मीर सुखमा, तथा ऊन ग्राम आदि श्रज भाषामें ही लिखे
हैं पर झब उनकी प्रदत्ति खड़ी वोलीकी ही शोर श्धिक थी । 'हरमिट' के
श्रनुवादका एक छन्द सुनिये-
प्राण पिवारेकी गुखगाथा सषु कदां तक मे गार्ऊँ ;
गाते गाते चुके नहीं वह चाहे में ही चुक जाऊँ।
विश्व निंकाई विधिने उसमें की एकत्र बटोर
वलिंहारी त्रिभुवन धन उसपर वारौ काम करोर।
श्रान्त पथिक म अषप लिखते हैं :--
जहाँ द्रव्य और स्वाधीनी है तहाँ चित्त संतोष नहीं
जहाँ बनिजका वासा है हां पर महत्व निदोंषर नहीं |
अयवा-- +
है स्वदेश प्रेमीका ऐसा ही सर्वत्र देश श्रभिमान
उसके मनमें सर्वोत्तम है उसका ही प्रिय चन्म स्थान |
यह खड़ी बोलीकी सरल रचनाएँ हैं। श्रनुवाद दोनेपर भी मौलिकता की
छाप दे । लावनी छुन्दोंका प्रयोग क्या गया हे | कथानकं काव्य हे, परिपाटी
पुरानी है । पारकजी नो बहर तवील बहूधा लिखा करते थे वह लावनी दालोंके
ससगका फल. था |
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