आँखों में | Aankho Me

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Aankho Me by श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shree Harikrishn Premee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय गुना के कान्य-निर्भर वेदनावतार “प्रेमी ”” श्रौर उनकी इस कमनीय कृति का परिचय देने का मीठा भार उठाते हुए सुभे, हषं हो रहा है ग्रपने सौभाग्य पर; श्र, खेद हो रहा है श्रपनी श्रयोग्यत पर । यदि कविता की “नीरव भापा'' समालोचक-संसार सँ भी मान्य होती, तो, शायद सुभे श्रपनी श्र्तमता का यह श्ट प्रदशन न करना पठतः । किन्तु, “सवैः कातमात्मीयं पश्यति के श्रनुसार, “प्रेमी” को सुक से चटकर कोर परिचायक न मिलने चौर मुम उनका श्राग्रह यालने की शक्तिनष्टोने के कारण, से उनकी इस मधुर रचना ये श्रपनी उन पक्तियों की “मस़मल में टाट की गोट” लगाने को बाध्य होना पडा । कविता-कामिनी को सजी-सजाई नटखर रमणी की श्रपेक्ता भोली- भाल श्रौर खाभाविक वन-कन्या के रूप मेँ श्रधिक तन्मयता से देखने वाले कवियों में “प्रेमी” का भी एक स्थान है। वे केवल कविता ज्िखते समय ही नही, श्रा पहर कवि रहते हँ रौर सच्चे कवि रहते हैं। कविता को श्रपने जीवन का सर्व-व्यापक श्रौर स्थायी रंग वना लेने चाले कवियों मे, मेँ 'प्रेमी” को एक प्रलग स्थान देता हूँ । कौन जानता है, कि, उन्हे, कविता से इतने भिन्न होने कै कारण दही क्या- क्या न सहना पद है !




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