धर्ममीमांसा भाग 1 | Dharm Mimansa Bhag 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घर्मका स्वरूप ७
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पर उन मित्रोकी हत्या करना क्या उचित था १ जब हम उनकी
हिंसा किये विना जीवित रह सकते थे, तव क्या हमे उनकी रक्षा
न करना चाहिये थी. ? क्या यह तामसिकता हमारे अधःपतनका
कारण न थी १ यही सोचकर महात्मा महावीर ओर महात्मा बुद्धने
हिंसाके विरुद्ध क्रान्ति की । एक समय जो उचित था या क्षन्तन्य
था, दूसरे समयमे 'वही अनुचित था, पाप था, इछि उसके ` दूर
करनेके लिए जो क्रान्ति हुई वह धर्म कहलाई |
हिंसा-अहिंसाके प्रश्नके साथ गो-वधके प्रश्नको ङे छीजिये ।
निःसन्देह किसी भी निरपराध प्राणीकी हृत्या करना बड़ा भारी पाप
है. और हिन्दुस्थानमें गोबध करना तो बड़ेसे बड़ा पाप है ।
परन्तु मुसठमान धर्म जब और जहाँ पैदा हुआ वहाँकी दइृष्टिसि
हमें विचार करना चाहिए । महात्मा सुहम्मदके जमानेमे अरबकी बड़ी
दुर्दशा थी । मूतियोके नामपर वर्ह मनुष्य-वध तक होता था | इसको
दूर करनेके ठिए उनने मूर्तियोको हटा दिया । “ न रहेगा बाँस, न
बजेगी बाँसुरी ''-न मूर्तियाँ होंगी, न उनके नामपर बलि होगा |
परन्तु इतनी विद्याल क्रान्ति, छोग सह नहीं सकते थे । पात्रताके
अनुसार ही सुधार होता है । इसकिएं मनुष्य-बढि बन्द हुई और
गो-वघ आया । हिन्दुस्तानमे गो-वंश कृषिका एक मात्र सहायक होनेसे
यहाँ उसका मूल्य आधिक है । इसीिए गो-माता सरीखे शब्दकी
उत्पत्ति यहाँ हुई है । परन्तु अरबसे कृषिके ठिए गो-वंझाकी आवश्य-
कता नहीं है--वहाँ ऊटोसे चेती होती है | यदि वि आदिको
रोकनेके ठिए मुहम्मद साहवने मसि्यौ हटा दी, मलुष्य-बध रोकनेके
डिए् गो-वधका विधान किया, तो ‹ सुर्वना्च उपस्थित होनेपर अधिका
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