आत्म विकास | Atma-vikas

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Atma-vikas by आनंद कुमार - Anand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रालम-विकास 15 वाहरी साधनों से नही, वल्कि उसीके द्वारा जीतेगे; भीतर ही भीतर हम उनको नण्ट करके उसपर विजय प्राप्त करेगे । यही हमारी योजना है । घबराहट, परस्पर-वि रोधो विचारो का सघष, म्रनिरिचतता, भयकर त्रास की भावना--यही हुमारे हथियार होगे 1 श्र हम जानते द किं हिटलर ने कई श्रवसरों पर शत्रु-जनता के चित्त को डावांडोल एवं भय-संच्रस्त वनाकर उसको नष्ट कर दिया था। किसी पुराण सें भी इस सम्बन्ध मे एक कथा है। एक बार यमराज नें दूतों को बुलाकर कहा कि मुझे चार सौ मृत प्राणियों को प्रावद्यकता है, जाकर लाश्रो । दूत चार सौ मनुष्यों को मारने के लिएव्याधियों ग्रादि के सहारक अस्त्र-शस्त्र लेकर ससार में पहुंचे । चार सौ के स्थान पर वे झाठ सौ मृत प्राणी लेकर यमराज के सम्मुख पहुचे तो यमराज ने विगड़कर अझनावदयक व्यक्तियों कों लाने का कारण पूछा । दूतों ने कहां कि हम क्या करे; हम तो चार सौ व्यक्तियों को सार रहे थे, चलते समय ज्ञात हुभ्रा कि उस हत्याकांड से भयभीत होकर चार सौ व्यक्ति श्रपने-श्राप मर गए हैं । श्रत: उनके प्राणो को मी लाना पडा) इस कथा के ममं को समभिए । वह्‌ यह्‌ है कि अ्रधिकाड लोग विना मारे मरते हैं। उनके मन में भय का भूत समाया रहता दै। वह भूत मस्तिप्क को अगुद्धता से आ्राता हैं, क्योंकि भ्रूतवादियों के भूत भी गन्दी जगहों में, खडहरों श्रौर इमचानों ही में रहते हुए सुने जाते हैं--देव- मन्दिरों ्रौर सज्जनों के घर में नही । भय से जब श्रपना ही पैर लड़- खड़ाने लगता है तो मनुष्य जीवन-संग्राम में खड़ा नही रह सकता । श्रतएव श्रात्मोत्थान करने के लिए मन को झंका रहित, स्वच्छ बचाना चाहिए; उसके कुसंस्कारों को मिटाना चाहिए । उनके सिटाने पर ही निर्मुक्त श्रात्मा उसी प्रकार चैतन्य होगी जे से किसी की स्वतंत्र मातृभूमि । यह स्मरण रखना चाहिए कि श्रात्म-गुद्धि एक दिन में या एक वार में नहीं होती । इसके लिए दैनिक श्रभ्यास करना पड़ता है कि मस्तिप्क में 1. 0ण ०1९९४ 15 {0 प८्5ा९र पठ लाल पिणं पणत, 10 ८०000एटा धिए त्प [फञ्‌ = दाद] ल्गाप्डिकाा, तल्गप्व्वाद्धनारग ट्य{पाए5, पवट्लइा०ा, एपा१८ 2८ 008 १८205 (थः




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