राजपथ की खोज | Rajpath Ki Khoj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi
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साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा - Sadhvipramukha Kanakprabha
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)में सेतु का निर्माण नही हो जाता, इस सच्चाई का अनुभव भी नहीं हो सकता |
इस अनुभूति के अभाव में न तो समस्या का समाधान मिल सकता है और न ही
महावीर का दर्शन समझ में आ सकता है ।
महावीर को समझने का अर्थ है सूक्ष्म सत्य की अनुभूति । महावीर को पहचानने
का अर्थ है स्थूल से सूक्ष्म की ओर प्रयाण । महावीर को जानने का अर्थ है- वहिर्मुखता
से अन्तर्मुखता की ओर गति । महावीर को विश्लेषित करने का अर्थ है अंधकार
से प्रकाश की उपलव्धि । महावीर का जन्मदिवस मनाने का अर्थ है-महावीर की
भॉति जीवन जीने का संकल्प । इस संकल्प की आशिक या सम्पूर्ण स्वीकृति करने
वाले व्यक्ति ही अपने-आप को भगवान महावीर के अनुयायी मान सकते हैं । वे
ही उनके दर्शन को समझ सकते है और वे ही उनके जन्म-दिन मनाने की प्रक्रिया
को क्रियान्वित कर सकते है !
महावीर के अनुसार मानव जगत् के प्रति ही नहीं सम्पूर्ण प्राणी जगत् के प्रति
समत्व की अनुभूति होनी चाहिए । वेप्राणी स्थूल हों या सूक्ष्म, चर हो या अचर,
सबल हों या निर्वल- उन सबमे प्राणशक्ति है, चैतन्य है । यदि इनमे से किसी
भी प्रकार के प्राणियों का सन्तुलन गड़वड़ाता है तो सारे संसार की स्थित्ति गड़वड़ा
जाती है । आज की भाषा मे जिसे इकोलोजी' कहा जाता है, वह भगवान् महारीर
के समत्वमूलक दृष्टिकोण का एक प्रतिविम्ब है । समता का यह सिद्धान्त जब व्यवहार
में फलित होता है तभी व्यक्ति जीने का सही आनन्द पा सकता है । /
इकोलोजी के सन्दर्भ में अहिंसा की व्याख्या की जाए तो कुछ नयी दृष्टिया
और नया चिन्तन हमारे सामने आता है । जैसे एक तथ्य है जंगल काटने का
जंगल काटना हिंसा है और हिंसा त्याज्य है, इतना कहकर किसी व्यक्ति को हिसा
से विरत नहीं किया जा सकता । किन्तु इसी तथ्य को सांगोपांग रूप से निरूपित
किया जाए तो सहज भाव से समझ में आ जाता है कि एक जंगल काटने मात्र
से समस्त जगत् की व्यवस्था किस प्रकार अस्त-व्यस्त हो जाती है । जिस क्षेत्र का
जंगल कटता है, उसके पार्श्व्ती भू-भाग में वर्षा कम होती है । वर्षा की कमी का
प्रभाव कृषि पर पड़ता है । फसल पर्याप्त नही होती है तो पेट नही भरता है और
संसार में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है । वनस्पति की उत्पादकता मे कमी होने
से जीव-जगत पर जो प्रतिकूल प्रभाव होता है, वह केवल संयम की दृष्टि से ही
नही, जागतिक व्यवस्था की दृष्टि से भी चिन्तनीय है । बर्तनों की पंक्ति के नीचे
यदि एक वर्तन को खिसकाया जाता है तो वह पूरी पंक्ति अव्यवस्थित हो जाती
है । मकान की एक ईट को इधर-उधर कर देने से पूरे मकान को खतरा हो जाता
है । इसी प्रकार जगत की सहज व्यवस्था में एक पदार्थ को इधर-उधर कर देने
जन्म-दिन : एक समूची सृष्टि का ॐ ५
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