चीनी जनता के बीच | Chini Janata Ke Beech

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गृह-युद्ध और सरदारों के झासन के बाद, पहली बार चीन में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार स्थापित हुई है जिसने अमन-चेन क़ायम किया है। चीन अब एक ऐसा राष्ट्र है जिसे अपनी शक्ति और राष्ट्रीयता पर गर्व है । चीनी अनत। में भेयंपूवक कढ़ा परिश्रम करने की आरचयरेजनक क्षमता है, उनकी राजनीति जो भी हो । आज चीन अपनी भौगोलिक सीमाओं में एक शक्तिशाली मद्दान्‌ राष्ट्र है और उसकी शक्ति दिन पर दिन बढ़ती ही जायेगी ।” जब मुझे पीकिंग विश्वविद्यालय के पौर्वात्य भाषा और साहित्य-विभाग में अध्यापन का आमंत्रभ मिला तो मुझे अत्यन्त ही प्रसन्नता हुई थी । मेंने सोचा था कि नये चीन को अध्ययन करने का यह स्वण अवसर न खोना चाहिये । अपने राम नारायण रुइया काढिज, बम्बई से कुछ समय के लिये अवकाश श्राप्त कर, मे अपनी पुत्री चक्रेश के साथ चीन के लिये रवाना होगया था । वह दिन मुझे सदा याद रहेगा, जब ब्रिटिश सीमा को लांघकर पहले-पहल चीन की भूमि के दशन किये थे । सीधे-सादे चीनी नर-नारियों के दंसते-मुस्कराते हुए, जिज्ञासापूर्ण चेहरे कभी न भूले जा सकेंगे ! रह-रहककर मन में विचार आता था : * क्या यद्द वद्दी जन समूह है, जो सदियों के शोषण और उत्पी- इन से मुक्त होगया है? क्या इसी जनता ने अमरीकी अख्र-शक्रों से लेस च्यांग काई शेक की सेनाओं के छक्के छुड़ाये हैं ? ' ७ केण्टन पहुँचने पर, पता लगा कि पीकिंग विश्वविद्यालय के पौवोत्य भाषा और साहित्य-विभाग के प्रमुख डा. चि इयेन्‌ लिन हम लोगों को लेजाने के ल्यि भये थे । विय्वविद्यालय के प्रेसीडेण्ट ओर वाइस प्रेसीडेण्ट का जो पत वे रेक आये ये, वह अपने देश के प्रति चीनी जनता की भावना को च्यक्त करता है : यह जानकर हम बहुत प्रसन्न हैं कि आप कैण्टन आगये हैँ । आपका स्वागत करने ॐ लिये, हम अपनी ओर से पौवौत्य भाषा ओर साहित्य-विभाग के प्रमुख ड, चि येन्‌ लिन्‌ को मेज रहे हैं । चीन ओर भारत दोनों पड़ोखी देश दहै, गतं कड ह्वार वर्षो से दोनों देश सदा शान्तिपूवेक रहे हैँ । यद तो ठीक नही कहा जा सकत। कि कितने चीनी विद्वानों ने भारत की यात्रा की भौर कितने भारतीय विद्वान चीन भये ये, छेकिन इससे दोनों देशों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में उन्नति हुई भर दोनों के मिन्नरतापूण सम्बंध दृढ़ हुए हैं ।




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