जैनाचार्यों का शासनभेद | Jainacharyon Ka Shasanabhed
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अष्ट मुखगुण ९
भ अ भम १७
ऐसी ही परिस्थिति हो जिसके कारण उन्हें ऐसा करनेके छिये बाध्य
होना पड़ा हो--वहाँ यूतका अधिक प्रचार हो और उससे जनताकी
हानि देखकर ही ऐसा नियम बनानेकी जरूरत पड़ी हो--अथवा
सातों व्यसनोंका मूलगुणोंमें समावेश कर देनेकी इच्छासे ही यह परि-
वर्सन स्वीकार पिया गया हो| जोर ' मघुविरति को इस वजहसे
निकालना पड़ा हो कि उसके रखनेसे फिर मूलणणोंकी प्रसिद्ध * अर ?
संस्यामे बाधा आती थी । अथवा उसके निकालनेकी कोई दूसरी ही
घजह हो । कुछ भी हो, दूसरे किसी भी प्रघानाचार्यने, जिसने अष्ट
मूलगुर्णोंका प्रतिपादन किया है, * मघुविरति * को मूल्युण माननेसे
इनकार नहीं किया और न.“ यूतविरति * को मूछगुणोंमें शामिछठ
किया है |
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( ३) ‹ यशस्तिख्क › के कतौ श्रीसोमदेवसरि मय, मांस ओर
मधुकैः व्यागरूप समन्तभद्रके तीन मूलख्गुणोंको तो स्वीकार करते हैं
परंतु पेचाणुत्रतींको मृढगुण नहीं मानते, उनके स्थानमे पंच उदुम्बर
फरोके-- प्क्ष, न्यग्रोध, पिप्पलादिके--त्यागका विधान करते हैं और
लिखते हैं कि आगममें गृहस्थोके ये आठ मूलगुण कहे हैं । यथा:---
के @ न्दे, व
मदयमांसमधुत्यागाः सहोदुम्बरपंचकैः। र
अष्टावेते गृहस्थानागरुक्ता मूरुगुणाः श्रुते ॥
८ भावसंग्रह ' के कतौ देवसेन आचार्य भी इसी मतके निरूपक हैं ।
यथाः--
महुमन्नमेस विर चाओ पुण उंबराण पचण्डं |
अषद् मूलगुणा हर्षति एड देसविरयम्मि ॥ २५६ ॥
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