सन्निवेश -पांच | Sannivesh Panch

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्टति घर चरित्र को महत्त्व नहीं दे पा रहा । मतिकता उसके संस्कारों से हटती जा रहो है। जो देश प्रगति की चरम सीमा पर है भौर जहां का धायु मण्डल नैतिकता के भभाव में भुलस रहा हैं उसे हम भर्छी तरह देख हे हैं । भौठिक प्रगति के उन बा्तावरणों में जहा भ्रदिवाहित स्तयो की शाह दसादर उफन रही हों या जहां के लोग विलासिता के विष से जीवन भूत हो रहे हों या प्रचुरता के उपभोग याने खपत के भ्रभाव में जहा जीवन- मरण का प्रश्न भारम-हत्या तक को ललकार पर चढाये हो, हम स्पष्ट देख रहे हैं कि यह सामाजिक भानसिक शुष्कता ही नंतिक संस्दरो की रिसिता का स्थान ले रही है । भौतिक प्रगति के मूल से ही हम भी भूल में है। साश्वोस्य भी के समा 'के नवीनें कप्टदैयर्क सुरंग भरे यं मी पर्वत सन हिं। हम भी नैतिकता का श्रमाव खलने लगा है तो भारतीय समाज के लिये यह अवसर है कि श्रपने निज के नैतिक बल को सजोकर प्रगति पर प्रगति की नई छलाग लगाये । यह एक बीड़ा है, यु सुधारको के लिए जीवन की यहूं एक ललकोर है । चुद्धिबाद--कारणों भौर तक को महत्त्व देने वाले समाज को यथपि प्राध्यात्मश्रौर स्पमालिक चरसि का स्पष्ट नदशा नहीं दोता,वे वल व्यावहारिक बरुरालता पर प्रधिक मद्व देते हँ पौर परान शारवते सत्यों को मुठलाने का कभी-कभी तो भूठा दम भी भरते हैं । सें० छपी उंड 2950106 के नारे में भौगोलिक-सामाजिक स्थानीय परिस्थितियों वी भ्रपनी परम्पराए भी लुप्त हो रही हैं। ' यद्यपि भ्रधदिश्वासो (8प0€8१1४०08) भौर भाघारमभुत भयो ' (050 {675} से बद्धिदाद ष्ुटकारा दिलाने का जदरदस्त दावा करता है भोर जो तथ्य तकें के भ्राघार पर खरें नहीं उत्ते वे याज्य सिद माने जति ह) धर्म निरपेदाता का दिदार उसी सून से जुड़ा टुभा है । धर्मनिरपेक्षता से मनुष्य मे कट्टरता कम हुई है, दूसरी को सुनने बी शक्ति बढ़ी है । इससे भव मनुष्प ( रद €1६7 हानिएअ) नहीं , मनुष्य थी इति {शप 01 एप्प) हो समाज में उसका स्पात निर्धारण बरती है । सम्रिवेद-पांच / १३




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