हिन्दी गद्य - पद्य संग्रह | Hindi Gadya - Padya Sangrah

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Hindi Gadya - Padya Sangrah by चतुर्वेदी द्वारिकाप्रसाद शर्मा - chaturvedi dwarikaprasad sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सबाजित्‌ का चथ । ४ तदा जा ! महणड 1 इदन्ते यात सुन शतधन्वा निपट उदु हो, व्हा स चल श्र के परख श्राया शरीर हाथ यधि, सीखनाय,विनतो कराह खाय, कदने लगा किः~- मु तुम दो यादवे ई, दुर नङ ६ सर सी) ` कु दयालु धम्यं तुप धीर, दुद सद श्राप इरत परपीर ॥ ५ -मचनष्टे शी लन्ना वुम्रे, चपरनो सले तषो तुम इमें ॥ मैंने तुम्दाय ही कदा सान यद्‌ कयम हिया; अव तुम्द्‌ रप्ण के हाथ से बचाओ । इतनी यात फै सुनते र करो ने शतधन्वा से फा, फि वू घड़ा भूख हैं जी है पी यात फदता है ! कंय तु नदी जानता पपै भीदृप्णचन्द्‌ सब फेः फतो, दुःखदर्ता हूं? उनसे देर कर संसार छव फो रद सकता & ! फटने घाले फा कय। पिगद्धाट्श्रयक्तोत्तरे विर पर शरान परी । पदै, सुर भर मुनि को थादी रीति, स्वार्थ लागि करे सय श्रीति--शीर जगत में यहुत भौतिके लोग द, सो धनव नेकः प्रपरोर फी पतिं श्चपने स्पार्थ कौ कदत है ! इसमें रुप्य फे उचितं ह, किः षदे पर न लाय, जो छाम करे, विसमे पले धपा भला युत विचार ल, पदे उस षाम में पाँव दे । शूने चेसममवूम कर किया है धयम, धद तुभे षं सगत मे रने क्र नर्द है धाय, निस्ते शष से धर कितया, यह फिरन जिया, रदौ भाग के रहा, सह सात गया । मुझे मरना नहीं जो तेरा पश्न करूँ, संसाए में जी सय कोर प्यारा है । मदायज ! अर्रडी ने शप शगनधग्या को था र्खे शू प्न सूनवि, तथ धद निर द; ओने षौ भा दोर्‌, भत्ति धषरजी दः पि रख रथ पर चद, नट दुर्‌ भागाः श्यौर ठररङ पीति रथ घर




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