सिंघी जैन ग्रन्थ माला | Singhi Jain Granth Mala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Singhi Jain Granth Mala by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

Add Infomation AboutAchary Jinvijay Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{पला चच 5571585 0145 [आ 117€ 58 81६8वर छदा. ॐ अद्यावधि मुद्धितग्रन्थनामावङि 8 4 मेस्टु्गाचार्यरवित भ्रबन्धचिन्वामणि १५ हम्रसूरिविरवित धरूतौख्यान, ( ङ्त ) मूल संसृत थन्ध. १६ दुगैदेवङृत शिष्टससुखय.. क २ पुरातनग्रबन्धसंग्रह बहुवि देतिह्यतथ्यपरिपूण | १० मेघविजयोपा्यायक्त दिग्विजयमदाकाम्य. अनेकं निबन्ध कि मी | १८ कवि अब्दुल रदमानछृत सन्देशरासक, ३ राजदेखरसूरिरचित प्रदन्धकोचा. ३५ सर्वीदरिकृत शतकब्रयादि सुभाषिवसंत्रह, ४ जिनप्रभसूरिक्त विविधतीर्थकल्प,. ` , | २० शन्याचरथत न्यायावतारवार्तिक-वृसि, ५ मषमिशयोपापयायहत दवानन्यमहानाम्यः २१ कवि धाहिखरब्दित फडमसिरीचरिड (अप० & यदोविजयोपःध्यायछ्त जेनदकंभाषा. ` 1 1 ७ हेमचन्द्राचायकत' प्रसाणसीसांसा, २३ भद्रबाहुसंहिता. < भट्टाकलडुदेवकृत भकलकूयन्थचयी, जन ९ प्रबन्धचिन्तामणि ~ हिन्दी भाषान्तर, २४ जिनेश्वरस्‌रित कथाकोषश्रकरण. ( प्रा ) १० प्रमाचन्द्रसुरिरचितं प्रभावकचरित. ९५ उद्यपभसूरि्त घर्मान्युद्यमद्दाकान्य, ११ सिद्धिचन्दोपाध्यायरचित भामुचस्द्गणिचरित, | २३ जयरसिंहसूरिकत घर्मोपदेशमाला, १९ यशोविजयोपाध्यायविरत्ित श्ञातबिन्दुप्रकरण. | २७ कोऊदलविरचित छीरावहै कदा (भ्रा०) १३ हरिषेणाचायेकृत बहतकथाकोदा, २८ जिनद्ताख्यावह्वय, १४ जेनपुश्तकमदास्विसेमरद, प्रथसः भाग, २९ सर्य॑भूविरन्ित पडमचरिउ ( अपप्र॑श ) 71. 0. 0. 8५015 1.16 ग प्लक्ववलायाता-व्दयौा दए. 318४6 तित कलकय एष +. भ्न 8081, 1. 1). _ दि [1 {€ 7/€58. ॐ संप्रति सुव्यमाणम्नन्थनामावरि ‰ १ खरतरच्छ्ददुगु्बावलि. ९ महासुनिगुणपाख्विरचिते जंबप्वरित्र ( प्राकृत) २ कुमारपाठचरित्रसंग्रह, ही १० जयपाहुडनाम निमित्तताख्र, ( प्राञ्त ) ३ विविधगल्डीयपट्टावलिसंग्रह, ११ गुणचन्द्रविरचित मंत्रीकर्म चन्द्रवैशाप्रबन्ध, थे शा द त (0 ति: 9 र नयचनद्रविरचितं हम्मीरमदहाकान्य. ५ विसि - वित्तपि महारेख - विज्ञप्ति त्रिनेण महेन्दसूरिकत नर्मदासुन्दरीक आदि अनेक विज्ञप्तिठेख समुश्नय, ञि पहा काम ९ उद्योतनसूरिकत कुवरयसाछाकथा. १४ सिद्धिचिदकेत काव्यप्रकाशखण्डन, ७ कीर्तिकौसुद्दी आदि वस्तुपालप्रशसिसंप्रह, .. | *” कौटित्यकत भथेशास्र सटीक. < दामोद्रंछत उक्तिव्यक्ति प्रकरण, १६ गुणप्रभावाय॑क्ृत विनयसूप्र. ` `. ति एमावतवाः उतद्ा हाल -िलापाएीषड 4 १७ ^ १. स्व, बाबू, 9 सिंषी सूषतिथन्थ [ भारतीय विद्या, भाग ३] सन १९४४, 2 [6 थप ज्‌ एशव्ठपः अपण्छापा अण्ण शलपण्यक्‌ पमुप 1 6 [शुष्य प 4. 1), 19, 3 [पप्ठष्प (०9 र 008 -४ धपा त्‌ 1४8 (0पसएपत स0 उधाहफलोंए अहिशबॉघिएह, कक ऋ, कव्डान्‌ क. 5००९891 उन 0. पक ला के डर 5 ॐर्त68 & [तार [नल पाणण, पृष0 इ णुपा०8, । द ण. | =, रू, कक र. 9, ही | [ के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now